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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

"डायरी"-1

   बाहर से इस महल को देख कर मैं समझा था कि  थोड़े से लोगों के लिए इतनी बड़ी इमारत ? पर भीतर आकर पता चला कि  अन्दर बहुत सारे लोगों की भीड़ है। लगभग साठ लोग तीन लोगों के जीवन को जीवन बनाने में जुटे हैं। मैं इस बारे में अपने मित्र से कुछ नहीं पूछ सकता, क्योंकि उसे कुछ पता नहीं है। वह कहता है कि ये लोग मैंने नहीं बुलाये, मेरे पिता ने बुलाये हैं। इन सब पर घर के लोग कितने अवलंबित हैं, यदि किसी दिन ये लोग यहाँ न आयें, तो घर के लोग 'स्टेचू' होकर रह जायेंगे।यहाँ सब कुछ इस तरह चलता दिखाई देता है जैसे जीवन  किसी ट्रॉली में रख कर कई लोगों द्वारा धकेला जा रहा हो। मेरे मित्र का परिवार जैसे किसी मंच पर सजा  है, कुछ भी गोपनीय नहीं।

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