उस शहर का लगभग आधा जिस्म कांच का ही है. कांच भी सपाट नहीं, बल्कि छलकता हुआ. झीलों पर छोटी-छोटी लहरें हीरे की कनियों के समान दमकती हैं.पहचान लिया आपने. यह राजस्थान के दक्षिण में बसा उदयपुर ही है.यहाँ की मेवाड़ी बोली इतनी मीठी है कि बोलने वालों का मुंह देखते रह जाते हैं लोग. इस शहर की फितरत में फूल और पत्थर दोनों हैं. जितना आकर्षक गुलाब बाग उतनी ही नयनाभिराम मोती मगरी पर बनी महाराणा प्रताप की मूर्ति.दुनिया भर के सैलानी यहाँ झील के उस पार नहीं , बल्कि झील के बीचों-बीच बने जल-महल का सौन्दर्य निहारने आते हैं. फतहसागर में नौका-विहार भी युवाओं का खास शगल है. कुछ साल पहले इस शहर ने भी बुरे दिन देखे थे, जब लगातार कम होती बरसात ने इन झीलों को सुखा डाला था. दर्पण, जैसे मिट्टी हो गए थे. सुखाडिया सर्किल इस शहर की शामों को गुलज़ार करने की खास जगह है. इस शहर को चारों ओर से अब भव्य और चौड़ी सड़कों से जोड़ दिया गया है.उदयपुर को पहाड़ों ने भी संवारा है. इसके महल, मंदिर तो अनोखे हैं ही, सहेलियों की बाड़ी भी लोग देखना पसंद करते हैं. राजे-रजवाड़ों की समाप्ति के बावजूद इस शहर के सामंती रंग-ढंग अब तक कम नहीं हुए हैं.यहाँ की बोली ही नहीं लिबास में भी पुराने दिन झलकते हैं. कहने को इस के ढेरों खूबसूरत होटलों में विदेशी पर्यटक भी बड़ी तादाद में ठहरते हैं.
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