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रविवार, 24 अप्रैल 2011

रामपुरों और सीतापुरों की भीड़ में एक 'भरतपुर'

अयोध्या के राजवंश की कहानी ने देश-दुनिया को कई पात्र दिए.कुछ पात्र तो इतने लोकप्रिय हुए कि उनके नाम के मंदिरों, मोहल्लों और नगरों की बाढ़  सी आ गयी. कुछ पात्र ऐसे भी हुए जिनके नामों पर लानतें भेजी गईं और किसी ने वे नाम न रखे. आज तो आलम ये है कि लोग नाम दूसरे पात्रों के रख रहे हैं और काम दूसरे पात्रों के अपना रहे हैं.राजस्थान के यूपी बोर्डर पर भरतपुर नाम के जिले ने भरत को भी भारतीयों की स्मृतियों में बनाये रखा है.यह संभाग मुख्यालय भी है , जो जयपुर से उत्तरप्रदेश में जाने वालों के लिए सिंहद्वार है. आगरा से लगा यह जिला अपने में कई ऐतिहासिक इमारतों को समेटे हुए है. यहाँ स्थित "पक्षियों का अंतर राष्ट्रीय बसेरा-घना बर्ड सेंक्चुरी "देशी-विदेशी पर्यटकों की पसंदीदा जगह है. इसी के चलते यहाँ होटल व्यवसाय ने भी अच्छी तरक्की की है. जिस तरह गंगानगर ने राजस्थान को पंजाबी लहजे से जोड़ दिया उसी तरह भरतपुर ने ब्रज भाषा की मिठास को राजस्थानी में घोला है. अब सुन्दर सड़क-मार्ग से जुड़ा यह जिला राजस्थानी -हरियाली का प्रतिनिधित्व तो करता ही है , यह दबंगई में भी किसी से कम नहीं है.इसकी दोस्ती धौलपुर और करौली जैसे शहरों से जो है. शायद केकयी का बेटा होने से जो छवि भरत को मिली वही भरतपुर को भी मिल गयी. लेकिन जैसे भरत का राम से प्रगाढ़ प्रेम था, वैसे ही इसका प्रेम भी राजधानी जयपुर से है.       

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