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सोमवार, 18 अप्रैल 2011

संवेगी हवाओं के गुजरने से दौसा

राजस्थान के दौसा जिले में राजनैतिक जागरूकता या संवेदनशीलता कुछ अधिक है। अभी हम यह बात नहीं कर रहे कि यह सकारात्मक है या नकारात्मक, लेकिन वहां जन-शक्ति में आंदोलनात्मक आवेग और आवेश दीखते रहते हैं। इसके तीन कारण हैं।सबसे पहला प्रमुख कारण तो यह है कि यह अपेक्षाकृत नया जिला है, जिसे कुछ वर्ष पहले जयपुर से अलग करके बनाया गया था। इसी से यह तथ्य भी उजागर होता है कि लम्बे समय तक जयपुर का भाग रहने के कारण इसकी अपनी समस्याएं और विकास-प्रश्न जयपुर की समस्याओं टेल दबे रहे, उन्हें अलग से आवाज़ नहीं मिली। वो अब मिल रही है। दूसरे, संविधान-निर्माताओं ने " आरक्षण " के लाभ की जो परिकल्पना समाज के लिए की थी, यह क्षेत्र उसकी अच्छी मिसाल है। इस ' मीणा बहुल ' जिले के हजारों लोग पढाई और नौकरी में अब अच्छी-अच्छी जगहों पर लग कर छा गए हैं, और वास्तव में किसी समय की यह पिछड़ी जनजाति अब विकसित समुदाय के रूप में देश भर में पहचानी जा रही है। तीसरा कारण यह है कि देश के सर्वाधिक राजनीतिबाज़ माने जाने वाले ' उत्तर प्रदेश ' से जो रास्ता राजस्थान की राजधानी तक आता है , यह शहर उसी पर अवस्थित है। संवेगी हवाएं इसे मथती ही रहती हैं।जयपुर से देशी-विदेशी सैलानी जब ताजमहल के नगर जाते हैं , तो इसी शहर की परिक्रमा सी करते गुज़रते हैं। नव-निर्मित राजमार्ग पर शांत वातावरण में बने जिला-कलेक्ट्रेट, सर्किट-हाउस और अन्य सरकारी भवन इसकी गरिमा को बढ़ाते हैं। अपने एक बाजू से यह लालसोट और गंगापुर जैसे पीछे रह गए इलाकों को छूता है, तो इसका दूसरा बाजू शान से जयपुर की अंगुली थामे है।

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