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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

पापा से ज्यादा दादा का लाडला - अलवर

राजस्थान का अलवर शहर अपने संभाग मुख्यालय - जयपुर की बनिस्बत देश की राजधानी दिल्ली के प्रभा-मंडल अर्थात राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से ज्यादा प्रभावित है. नीमराना से लेकर शाहजहांपुर, बहरोड़ और सरिस्का तक इसकी भव्यता दिल्ली की तर्ज़ पर ही है. इस शहर की मिठास भी कम नहीं है. यहाँ का मिल्क केक या मिश्रीमावा देश भर के लोगों की ज़बान को मीठा करता रहा है. सरिस्का के बाघों ने राज्य के मुख्य मंत्री को जितना लुभाया उससे कहीं ज्यादा देश के प्रधान मंत्री को चौकन्ना बनाया है. जब-जब यहाँ शेरों की दहाड़ मंद पड़ी तब-तब अफसरों को नेताओं की दहाड़ सुननी पड़ी. इस शहर का जिला कलेक्ट्रेट भी बड़ा आलीशान है. वहां एक कक्ष से दूसरे गलियारे - चौबारे घूमते हुए राज्य के राजसी दिनों की याद ताज़ा हो जाती है. ऐसा आभास होता है कि पुराने दिनों में रजवाड़ों के दरबारी और सिपहसालार इन्ही सीढ़ियों से गर्व से गुज़रते और विनम्रता से झुकते हुए चलते होंगे.इस शहर ने औद्योगिक ऊँचाइयों को छूने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है.पर्यटन के नक़्शे पर भी अलवर की अच्छी-खासी दखल है. सिलीसेढ़ और पान्दुपोल   सैलानियों को लुभाते हैं.वर्षों तक छोटी लाइन पर चली प्रतिष्ठित गाड़ी - पिंकसिटी ने मुसाफिरों को अलवर से जोड़े रखा है. इस शहर को राजस्थानी संस्कृति से बेहद प्रेम है, जिसका अहसास इसके नाम के बीचोंबीच छिपे 'लव ' अक्षरों से होता है.    

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