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रविवार, 2 सितंबर 2012

वह एक छोटी सी पुरानी डायरी थी

 वे बहुत मोटे और भद्दे आदमी थे। लेकिन उनके इन गुणों-अवगुणों को मुझे नज़रंदाज़ करना पड़ेगा, क्योंकि इन्ही के कारण वे मुझे मिले। वे उसी वैद्य के पास अपने लगातार बढ़ते मोटापे की दवा लेने आये थे, जिसके पास मैं अपना समय काटने की गरज से कभी-कभी बैठा करता था। उनसे वहीँ परिचय हो गया। वे बोले- बाई जी राज उनकी शिष्या हैं, क्योंकि पुराने महल के खजाने की सात चाबियों में से एक उनके पास है।इसी के साथ वे अपनी उम्र भी अट्ठासी साल बताते थे।
वे कहते थे कि  लगभग तीन सौ साल पहले इस शहर के महाराज साहब का छोटा बेटा इंग्लैण्ड में पढ़ने के लिए  गया था, और उसी के साथ विलायत से उसका एक दोस्त कुछ दिनों के लिए छुट्टियाँ बिताने हिन्दुस्तान आया था। इसी अँगरेज़ बच्चे ने यहाँ शाही परिवार की मेजबानी में घूमते हुए एक डायरी लिखी जो जाते समय वह भूल से यहीं छोड़ गया। अब वह डायरी उनके पास थी। वह दो सदियों तक पूजाघर में रखी आरती की किताबों के साथ महफूज़ रखी रही, क्योंकि शाही परिवार का कोई भी वाशिंदा अंग्रेजी नहीं जानता था। एक दिन महारानी साहिबा ने पूजा के बाद एक दौने में पंचामृत उन्हें दिया और उसी पर ढकने की गरज से वह डायरी उनके साथ उनके घर आ गयी।
अब वे उस डायरी को एक शर्त के साथ मुझे दे देना चाहते थे। शर्त यह थी कि  मैं अपने अगले उपन्यास में एक पात्र के रूप में उन्हें चित्रित करूंगा। शर्त मैंने मान ली, और अब मैं प्रस्तुत करूंगा उसी डायरी के चंद पन्ने बारी-बारी से ..."स्टिल इण्डिया" में।  

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