आज यहाँ कोई त्यौहार है।सुबह से ही चहल-पहल है। आज राजा और रानी साहिबा का उपवास रहेगा। करण ने बताया कि महल के सारे लोग उसके पिता और माँ के सम्मान में भोजन नहीं करेंगे। शाम को सबका सामूहिक भोजन होगा। करण के चाचा ने करण और मुझे अपने भवन में बुलाया है, आज हम दोपहर का भोजन वहीँ खायेंगे। बाद में पास के जंगल में हम शिकार के लिए भी जायेंगे। महल के गलियारों में शेर, बारह-सिंघा, हरिण आदि के जितने भी सर टंगे हैं, वे सब करण के चाचा के ही मारे हुए हैं। महल में काम करने वाले एक लड़के ने मुझे बताया था कि जब करण के पिता शिकार पर जाते हैं तो एक दिन पहले महल के दर्ज़नों आदमियों को जाकर जंगल में जानवरों को घेरना पड़ता है। वे पत्थरों से घिरे एक बाड़े में घेर दिए जाते हैं। मैंने भी ट्रेन से आते समय पहाड़ों की तलहटी में पत्थरों की लम्बी-लम्बी दीवारें रास्तों में देखी थीं।
मेरे बारे में

- Prabodh Kumar Govil
- I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India
मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012
रविवार, 7 अक्टूबर 2012
"डायरी-7"
घर के बहुत सारे कमरे बंद हैं, जो कभी नहीं खुलते। करण कहता है कि एक दिन इन्हें खुलवा कर देखेंगे, कि इनमें क्या रखा है। मैंने वहां काम करने वाले लड़कों से पूछा तो वे कहते हैं कि जब भी राज-घराने में किसी की मृत्यु हो जाती है तो जिस कमरे में मौत हो उसे हमेशा के लिए बंद कर दिया जाता है। उस व्यक्ति का निजी सामान और पसंद की वस्तुएं भी उस कमरे में रख दी जाती हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन दिवंगत व्यक्ति किस व्यक्तित्व और अभिरुचि का होगा। शायद कभी कोई इस सामग्री को एक संग्रहालय में बदल देगा।
यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन दिवंगत व्यक्ति किस व्यक्तित्व और अभिरुचि का होगा। शायद कभी कोई इस सामग्री को एक संग्रहालय में बदल देगा।
शनिवार, 6 अक्टूबर 2012
"डायरी-6"
आज हलकी सी सर्दी थी। एक ऊँट-गाड़ी ने तीन चक्कर लगा कर आठ-दस कटे पेड़ों की लकड़ियों का ढेर एक बड़े दालान में लगा दिया, वहां बड़ी भट्टी में सुलगती आग पर खौलते पानी में कई तरह के परफ्यूम डाले गए। लगभग पंद्रह बाल्टी पानी लाकर गुसल में रखे टब में डाला गया। सात-आठ युवतियों ने दो चक्कर लगा कर पानी भर दिया। वातावरण में भीनी सुगंध देर तक बसी रही। मैंने आज नहाने में कुछ ज्यादा वक्त लिया। करण उसी सरोवर में नहाया, जिसमें ठंडा पानी था। वह कहता है कि उसके लिए गुनगुनी गर्मी से ज्यादा महत्वपूर्ण है कुछ देर तैरना।
बुधवार, 3 अक्टूबर 2012
"डायरी-5"
आज आँख जल्दी खुल गई। मैंने महल के बुर्ज़ पर जाकर देखा तो बहुत अच्छा लगा। करण के पिता पीछे बगीचे में टहल रहे थे। उन्होंने हाथ उठा कर मेरा अभिवादन किया। तीन महिलाओं के पास केवल यह काम था कि वे छोटे बुर्ज़ पर कबूतरों को दाना डालें। वे मुस्तैदी से ऐसा कर रही थीं। घर का कोई सेवक किसी भी तरह का व्यायाम नहीं कर रहा था, फिर भी सब उम्दा सेहत वाले स्वस्थ लोग हैं। करण जागा नहीं था, किन्तु मुझे जागा देख कर बटर-मिल्क कमरे में भेजा गया। गिलास काफी बड़ा है, आश्चर्य यह कि उसके साथ रखे मिटटी के सुन्दर बर्तन में इतना बटर -मिल्क है, कि मैं 25 दिन तक पी सकूं।
"डायरी-4"
उनका कष्ट कोई नहीं मिटा सकता, क्योंकि यह कष्ट किसी ने दिया नहीं है। लेकिन उनके चेहरे से ऐसा लगता भी नहीं, कि इस से उन्हें कोई कष्ट है। उनसे मिलने के बाद मैंने अपने कमरे में आने के बाद एक छोटी सी पिन अपनी नाक पर चुभोने की कोशिश की थी। मुझे काफी दर्द हुआ। मैं नहीं मान सकता कि कोई नाक के आर-पार कील से छेद करदे तो नाक के मालिक को दर्द नहीं होगा। लेकिन फिर उस छेद में अन्य धातुओं की चीज़ें फसा लेना, और हमेशा इसी तरह रहना, ऊपर से गर्व से कहना कि इस छेद में जो हीरा है, वह बहुत वजनी है, मुझे नहीं पता कि यह सब क्या है? यह बात मैं अपने मित्र से नहीं पूछूँगा क्योंकि उसकी माताजी पूरे क्षेत्र की सबसे सम्मानित महिला हैं।
मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012
"डायरी-3"
घर में काम करने वाले ये लोग कर्मचारी नहीं, सेवक हैं। इनकी सहनशक्ति बहुत जबरदस्त है। ये विश्वसनीय भी हैं, ये पिता से पुत्र की बातें और माता से पुत्री के राज भी बखूबी छिपा कर रख लेते हैं। जब ये नौकरी छोड़ कर जायेंगे, तो डर है कि घर में कहर टूटेगा। मेरा मित्र कहता है कि यह कभी छोड़ कर नहीं जायेंगे। वह कहता है कि यहाँ उसके दादा के रखे हुए लोगों के पोते भी उसी बफादारी से काम करते हैं। इन्हें कोई नयी बात नहीं सिखाई जाती, केवल जो जिसकी खूबी है, उसे ही पहचान कर उसे तैनाती दी जाती है।
परसों आंटी के बड़ी मसनद लगा लेने से गर्दन में जो दर्द हुआ, उसे निकालने के लिए रसोई से चटनी पीस रही महिला को बुलाया गया।
परसों आंटी के बड़ी मसनद लगा लेने से गर्दन में जो दर्द हुआ, उसे निकालने के लिए रसोई से चटनी पीस रही महिला को बुलाया गया।
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