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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

"डायरी-8"

   आज यहाँ कोई त्यौहार है।सुबह से ही चहल-पहल है। आज राजा और रानी साहिबा का उपवास रहेगा। करण  ने बताया कि महल के सारे लोग उसके पिता और माँ  के सम्मान में भोजन नहीं करेंगे। शाम को सबका सामूहिक भोजन होगा। करण  के चाचा ने करण  और मुझे अपने भवन में बुलाया है, आज हम दोपहर का भोजन वहीँ खायेंगे। बाद में पास के जंगल में हम शिकार के लिए भी जायेंगे। महल के गलियारों में शेर, बारह-सिंघा, हरिण  आदि के जितने भी सर टंगे हैं, वे सब करण  के चाचा के ही मारे हुए हैं। महल में काम करने वाले एक लड़के ने मुझे बताया था कि  जब करण  के पिता शिकार पर जाते हैं तो एक दिन पहले महल के दर्ज़नों आदमियों को जाकर जंगल में जानवरों को घेरना पड़ता है। वे पत्थरों से घिरे एक बाड़े में घेर दिए जाते हैं। मैंने भी ट्रेन से आते समय पहाड़ों की तलहटी में पत्थरों की लम्बी-लम्बी दीवारें रास्तों में देखी थीं।

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