जम्मू कश्मीर राज्य की राजधानी है, परन्तु जब पहली बार मुझे जम्मू देखने का मौका मिला तो इसका यही, राजधानी होना जी का जंजाल बन गया. मैं अमृतसर से चल कर जम्मू पहुंचा था और एक होटल में ठहरा हुआ था. यह वही डरावनी काली रात थी जब स्वर्ण-मंदिर में ऑपरेशन ब्लू-स्टार हुआ था और अगली सुबह कई शहरों में कर्फ्यू लग गया था.
कुछ दिन तो सब ठीक-ठाक चलता रहा, पर जल्दी ही लोगों को परदेस में कर्फ्यू लग जाने का मतलब समझ में आने लगा.हज़ारों लोग इधर-उधर फंस गए. लोगों के पैसे ख़त्म होने लगे. लोगों के अपने-अपने घरों से संपर्क टूटने लगे. होटलों- धर्मशालाओं में खाना-पानी बीतने लगा. चोर-लुटेरे सक्रिय होने लगे.दिन में एक घंटे के लिए कर्फ्यू में ढील दी जाती, तब मैं ऑटो-रिक्शा करके स्टेशन जाता और पता करता कि गाड़ियाँ जानी शुरू कब होंगीं.सड़कों पर सन्नाटा फैला रहता और प्रशासनिक अमला लाचार सा घूमता रहता.यहाँ मैंने पुलिस वालों को लोगों की मदद करते भी देखा. वे घरों और होटलों की खिड़कियों से पैसे व बर्तन लेकर जाते और इधर-उधर से कम से कम छोटे बच्चों के लिए दूध दवा लाकर देते.डाकघरों में लोगों की भीड़ लगती, सबके पास यही काम, घर वालों को सन्देश भेजना कि पैसे भेजो. एक दिन एक अनपढ़ सा एक युवक मेरे पास आकर बोला कि यदि मेरे पास बीस रूपये हों तो उसे देदूं, वह डाक से मुझे वापस लौटा देगा. मैंने उस से इसका कारण पूछा तो वह बोला कि वह अपने घर टेलीग्राम कर रहा है, जिसमे बीस रूपये कम पड़ गए हैं.मैंने उसका टेलीग्राम फार्म लेकर देखा, तो पता चला कि उसने जो मैटर हिंदी में लिखा है उसके पोस्ट-मास्टर उस से पिचहत्तर रूपये चार्ज कर रहा है.मैंने उससे नया फार्म लाने के लिए कहा, और अंग्रेजी में उसे तार लिख कर दे दिया. उस तार के पच्चीस रूपये लगे. लड़का इतनी कृतज्ञता से मुझे देखने लगा कि शायद बीस रूपये दे देने के बाद भी नहीं देखता, क्योंकि उसका काम भी हो गया था और उस के पास तीस रूपये और भी बच गए थे. बाद में मैंने यह काम कई और लोगों के लिए भी किया.
खैर, वह यात्रा तो जैसे-तैसे पूरी हुई, पर बाद में कई बार जम्मू जाना हुआ. तब कटरा जाकर वैष्णो देवी के दर्शन भी किये और उधमपुर का सैन्य इलाका भी देखा.वही सड़कें, वही गलियां जो कर्फ्यू के दिनों में डरावनी दिखती थीं, सुहावनी दिखने लगीं.
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