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गुरुवार, 2 जून 2011

उस कहानी का नायक कश्मीर में मेरी नाव चलाता रहा

आपको राजस्थान के पूरे तैतीस जिले घुमाने के बाद अब हम रुख कर रहे हैं भारत के कुछ और शहरों का. सबसे पहले मैं कश्मीर की बात करूँगा. कश्मीर में भी वहां के सिरमौर श्रीनगर की . श्रीनगर को देखने की इच्छा पहली बार बचपन में तब मन में जगी जब मैंने दो फ़िल्में देखीं. इनमे से एक तो थी "आरज़ू" और दूसरी थी "जब जब फूल खिले". लेकिन जिस आरज़ू से मैं कश्मीर को देखना चाहता था, वह जब पूरी हुई तब तक कश्मीर न जाने किसकी बद-नज़र का शिकार होकर उजड़ चुका था.मुझे वहां घूमते हुए बराबर यह अहसास होता रहा कि वास्तव में फूल देर से खिले.लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जिस तरह अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी सत्तर साल के होने के बाद भी अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी ही होते हैं, कश्मीर भी अपने अतीत की सुनहरी मछलियों के हाथ से फिसल जाने के बावजूद कश्मीर ही था. 
मुझे कश्मीर मंज़ूर अहमद डार नाम के एक लड़के ने दिखाया.यह लगभग पांच दिन मेरे साथ रहा. बाद में मैंने इसी लड़के पर अपनी कहानी "सांझा" लिखी, जो दिल्ली के अखबार नवभारत टाइम्स में छपी. लगे हाथों एक बात आपको और बताता हूँ, कि जब फिल्म सत्ताधीश की पटकथा मैं लिख रहा था, उसमे सांझा का करेक्टर भी डाला गया था, जिसे अभिनीत करने के लिए गोवा के युवक श्याम सुन्दर थली से बात की गई थी.थली यह जानने के बाद, कि वह सांझा जैसा दीखता है, मेरे पास आने-जाने लगा था क्योंकि सांझा कहानी उसने भी पढ़ी थी. थली ने ही मुझे गोवा घुमाया, जब पहली बार मैं गोवा में कुछ दिन रहने गया. गोवा की बात भी करेंगे, लेकिन पहले कश्मीर की.      

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