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रविवार, 14 अगस्त 2011

यह दिव्य गाथा "खजुराहो की अतिरुपा" नामक उपन्यास की समीक्षा लिखने के दौरान पता चली

खजुराहो केवल अपने मूर्ति-शिल्प सज्जित मंदिरों के कारण विख्यात है.आसपास की बस्तियां यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए विभिन्न सेवा-प्रदाताओं की उपस्थिति के कारण बस गई हैं.पांच सितारा होटलों से लेकर ढेरों दुकानों और मकानों का यह सिलसिला इसे एक कस्बे की शक्ल में ले आया है.यहाँ आपको हर उम्र के ढेरों गाइड तो मिलेंगे, पर यदि आप पैसे बचाने के लिए किसी किशोर-वय गाइड को ले जाएँ, तो आपको अधिकांश पर्यटन-स्थल अपने आप देखना पड़ेगा, क्योंकि आपका गाइड कई बार शरमा कर मुंह फेर लेगा. 
कहते हैं कि किसी समय इस क्षेत्र के एक राजा को संतान नहीं थी.वह अपने उत्तराधिकारी के लिए चिंतित रहता था.उसने एक तांत्रिक के कहने पर राज्य के उत्तराधिकारी के लिए एक यज्ञ करवाया.इस यग्य के लिए नगर के सभी युवक-युवतियों को बुलाया गया पर राजा के लिए इसे देखना सर्वथा-निषिद्ध था.राजा ने राज्य के तमाम शिल्पियों,मूर्तिकारों और कलाकारों को निमंत्रित किया और उनसे कहा,कि वे यज्ञ देखें. जब यज्ञ सम्पन्न हो गया और राज्य को उत्तराधिकारी मिल गया,तब राजा ने सभी शिल्पियों से कहा कि वे मूर्तियों में यज्ञ को जीवंत करें.
शिल्पियों का कार्य देखकर राजा पहले तो क्रोधित हुआ,पर बाद में उनकी कला के आगे नतमस्तक होकर राजा ने मूर्तियों को मंदिरों में जड़वा दिया.तभी से ये पवित्र स्मृतियों के रूप में चिर-स्थापित हैं.

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