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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

"डायरी-25"

आज मुझे ताजमहल सपने में दिखा। यह चमत्कार जैसी कोई बात नहीं है, मैंने तस्वीरों में तो ताज को कई बार देखा ही है। लेकिन फिर भी यहाँ मैंने जिसे भी सपने की बात बताई, उसने यही कहा, इसका अर्थ यही है कि  मैं अब ताज को प्रत्यक्ष देखने वाला हूँ। करण  भी अब ठीक है, हम जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं।
आज मुझे एक शैतानी सूझी। मुझे लगता है कि  "प्यार की निशानी" देखते समय वह चेहरा ध्यान में ज़रूर होना चाहिए, जो आपको प्यारा हो? प्यार की छाँव में आँखें बंद करके बैठने पर आपकी स्मृति-पट्टिका पर झिलमिलाता वही चेहरा, होना भी तो चाहिए। आपको बतादूँ, पहली नज़र में ऐसा कोई चेहरा अभी तक मेरे पास नहीं है। मैं अभी छोटा भी तो हूँ। फिर मैं उस विश्व-प्रसिद्ध अजूबे में क्या देखूँगा? उसका स्थापत्य?
नहीं, मुझे देखना है कि सदियों तक प्यार को  सहेजने वाला यह महल मन में कैसे लहरें उठाता है।मैं कुछ सोच नहीं पा रहा। यदि मेरे नाम का धागा बाँधने किसी सूने मंदिर के भुतहा पेड़ पर चढ़ी कोई लड़की फिसल कर नीचे गिर पड़े, तो इससे भी मुझे ताज के अहाते में बैठ कर सोचने के लिए कोई छवि नहीं मिलती। ये तो उस लड़की की बेवकूफी है। मेरा भविष्य थोड़े ही?
फिर वहां मुझे कौन दिखेगा? क्या वह लड़की, जिसने उस दिन मेरे बैग में रखी चॉकलेट बिना पूछे खा ली थी? नहीं, जब तक वह अपने बालों का स्टाइल ठीक नहीं करती, मैं ताज के सामने बैठ कर उसके चेहरे की कल्पना नहीं कर सकता।

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