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शनिवार, 1 दिसंबर 2012

"डायरी-23"

मेरे वापस जाने के अब केवल उनतीस दिन बाकी रह गए हैं। करण कह रहा था, कि  कल हम 'ताजमहल' देखने जायेंगे। हमने अपने स्कूल के दिनों में जिन चीज़ों को संसार के महान आश्चर्यों के रूप में पढ़ा है, उन्हें प्रत्यक्ष देखना कैसा होगा, यह आप सोच सकते हैं।
मैं छोटा हूँ, लेकिन फिर भी आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि  मैं इस इमारत की उस धड़कन को पकड़ने की कोशिश करूंगा, जिसने इसे अमर-प्रेम की निशानी बनाया है। मैं शीशे की एक बोतल में इसे उतारूंगा, और साथ में खुद भी उतर जाऊँगा। मैं देखना चाहता हूँ कि  पत्थर पर प्यार कैसे चिपकाया जाता है?पत्थर से प्यार कैसे निचोड़ा जाता है? पत्थर में प्यार कैसे सहेजा जाता है? मैं वहां जाकर क्या करूंगा, यह आपको बता नहीं सकता, क्योंकि मैं खुद नहीं जानता। संगमरमर की यह उलटी प्याली प्यार को ढांप कर कब से रखी है, कि  बस दुनिया में इसकी खुशबू उड़ती है। दादाजी कहते हैं कि  इसके रंग भी उड़ते हैं।
अरे, पर मैं आने वाले कल में इतना कैसे डूब गया, कि  मैंने आज को दरकिनार ही कर दिया। आपको यह तक बताना भूल गया कि  आज सुबह की सैर के समय करण  घोड़े से गिर गया। उसके पैर पर पट्टी बंधी है।   

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