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गुरुवार, 19 मई 2011

आखिर विचार और विकास का सम्बन्ध जान गया जयपुर

राजस्थान की राजधानी और गुलाबी नगरी जयपुर आज तेज़ी से बढ़ कर विश्व मानचित्र पर आने को आतुर है. ऐसा और पहले हो सकता था, लेकिन आज़ादी के बाद पहले पैतीस-चालीस साल जयपुर ने अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी मारी.यह स्वतंत्र और जनसंघ जैसी पार्टियों को वोट देकर अपना प्रतिनिधि  विधानसभा में भेजता रहा, और सरकार कांग्रेस की बनती रही.अतः स्वतंत्र पार्टी की राजमाता गायत्री देवी और जनसंघ के भैरों सिंह शेखावत व सतीश चन्द्र अग्रवाल जैसे कद्दावर और जुझारू नेताओं की सारी शक्ति तत्कालीन सरकारों से विरोध-मतभेद रखने में खर्च होती रही, और बदले में जयपुर एक अदद बड़ी रेलवे लाइन को भी तरसता रहा. इस रस्साकशी में जयपुर अन्य राज्यों की राजधानियों से काफी पिछड़ गया. बदलते समय के साथ राज्य और केंद्र में एकसाथ बीजेपी भी आई और इसी तरह कांग्रेस भी आई. नतीजा यह हुआ कि जयपुर ने विकास की राह पकड़ ली. आज जयपुर ठीक वैसे ही पनप रहा है जैसे एशियाड के समय कभी दिल्ली पनपा था.आज जयपुर की शान केवल आमेर, सिटी-पैलेस, जंतर-मंतर,म्यूजियम, रामनिवास बाग़ ही नहीं हैं बल्कि वर्ड ट्रेड पार्क,दर्ज़नों अत्याधुनिक मॉल ,और बीसियों पांच सितारा होटल भी हैं.देश के हर बड़े शहर से जयपुर सीधी गाड़ियों से ही नहीं, हवाई मार्ग से भी जुड़ा है.अंतर-राष्ट्रीय विमानतल जयपुर की शान है. विदेशी पर्यटक यहाँ अब ऐसे घूमते  देखे जाते हैं, मानो वे अपने देश में ही घूम रहे हों. शानदार विधान-सभा भवन मौजूद है, लेकिन उसमे बैठ कर कौन क्या करता है, ये तो राम ही जाने.        

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