सीतापुर से जब हम नैमिषअरण्य के लिए निकले तो कोई कल्पना नहीं थी कि यह कैसी जगह होगी.जगह का नाम भी सब अपनी-अपनी तरह उच्चार रहे थे.वहां पहुँचते ही प्राचीन भारत की एतिहासिक जगह के स्थान पर आधुनिक भारत की उपेक्षित जगह के दर्शन हुए.निपट कस्बाई माहौल में धार्मिक भावना कहीं से भी प्रभावित नहीं कर रही थी.प्राचीन काल के प्रसिद्द आख्यानों से सम्बद्ध भवन आदि अति साधारण और बाद में निर्मित लग रहे थे.
उत्तर प्रदेश में इस समय जो सरकार है वह उस काल के लोगों और जीवन-मूल्यों से त्रस्त लोगों के समर्थन से बनी सरकार है,इसलिए किसी को कोई दोष नहीं दिया जा सकता.वेदव्यास और तुलसीदास ने जो भी लिखा है,वह समय की कसौटी पर है,इसलिए यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि वह कहाँ बैठ कर लिखा गया है.
समय की धारा को 'डल'झील जैसी ताजगी तभी मिलती है जब अमिताभ बच्चन,शर्मीला टैगोर,आशा पारेख,विनोद खन्ना,शाबाना आज़मी और पूनम ढिल्लों जैसे नामचीन लोग कालजयी "शम्मी कपूर"की अस्थियाँ उसमे प्रवाहित करते रहें.
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