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रविवार, 25 सितंबर 2011

झूठ क्यों बोलेगा, सही कह रहा होगा खुर्जा का वह लड़का

जब आप सड़क मार्ग से दिल्ली से अलीगढ़ की ओर जाएँ तो बुलंदशहर पार करने के बाद आपको चाय की तलब ज़रूर लगेगी. इसलिए नहीं, कि सड़क के गड्ढों में झटके खाते-खाते आप थक जायेंगे, बल्कि इसलिए कि खुर्जा की सरहद शुरू होते-होते आपको सड़क के दोनों ओर सैंकड़ों दुकानों पर इतनी खूबसूरत क्रॉकरी दिखेगी कि आपका मन बरबस इनमे से किसी प्यारे से कप या मग में चाय पीने को करेगा. दूर-दूर तक आपको हर तरफ ईंटों की बड़ी-बड़ी चिमनियाँ दिखाई देंगी,पहली नज़र में यह ईंट-भट्टों का अहसास देती हैं, पर वास्तव में यह क्रॉकरी को पकाने के लिए ही बनाई जाती हैं. 
मुझे खुर्जा में रहने वाले एक लड़के ने ही बताया कि इस शहर का नाम ऐतिहासिक उजालों से आता है. दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों को ख़बरें सुलभ कराने वाले घोड़ों के खुरों के अक्स ने इस शहर को यह नाम अता किया है.दिल्ली की सरहद से निकल कर घुड़सवारों का यहाँ तक चले आना यह बताता है कि दिल्ली शुरू से ही खुराफाती तबीयत की रही है. मज़ा देखिये, इस दिल्ली शहर ने कालांतर में इन तमाम खुराफातों को खुर्जा की छवि से ही जोड़ दिया. नगर के बस अड्डे पर आपके दांत खट्टे करने का इंतजाम शहर का अपना मौलिक है. 

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