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गुरुवार, 29 नवंबर 2012

"डायरी-22"

आज शाम को लड़के आकर मुझे भी खेलने के लिए बुला कर ले गए। कबड्डी मैंने जीवन में पहली बार खेली। करण  के साथ दो बार खेल देखने ज़रूर गया था। पहली बार में तो मुझे ऐसा लगा, कि  इस खेल में केवल मिट्टी  में लोट-पोट होकर  अपने शरीर को जोखिम में डालना है। लेकिन बाद में मैंने खेलने वालों और देखने वालों के चेहरे पर उल्लास-भरी मुस्कान देखी  तो मेरी दिलचस्पी भी इस खेल में बढ़ी। और आज तो मैं खुद मैदान में उतर गया।
लड़के मुझे छूने और पकड़ने में संकोच कर रहे थे। लेकिन जब मैंने करण की टांग पकड़ कर उसे गिराया, और वह मुझे दूर तक घसीटने के बाद भी अंक नहीं बना पाया, तो उसकी टीम के लड़के भी संकोच छोड़ कर मेरे प्रति आक्रामक हुए। मुझे अच्छा लगा, क्योंकि इसी से मुझे चुनौती मिली। बिना किसी खर्च के खेला जाने वाला यह खेल मनोरंजक है। मैं इसके नियम सीख लूँगा। इसे हम अपने देश में भी खेलेंगे। यह खेल मित्रों को करीब लाता है।और खिड़की-झरोखों में परदे की ओट से लड़कियों को भी।

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