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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

शनिवार, 16 जुलाई 2011

ab ham unhen pagdandiyan nahin express highway kahenge

यह अच्छी बात है या बुरी, कि अब जालंधर के आस-पास आपको गाँव नहीं मिलते. वे कहाँ गए? जब आप लुधियाना से सड़क के रास्ते जालंधर जाते हैं तो सारा रास्ता आपको कनाडा में होने का अहसास देता है. ऐसी दुकानों से आपका साक्षात्कार होता है, जो वर्षों पहले दिल्ली के कनाट-प्लेस वासियों को ही नसीब थीं. बीच में कहीं हरियाली और रास्ता दीखता भी है तो वह आपको वेनेज़ुएला और चिली की याद दिलाता है. 
कहीं किसी ढलान पर चारागाह में यदि कुछ मवेशी नज़र भी आते हैं तो वे कृष्ण की मुरली की याद नहीं दिलाते, बल्कि माइकल जैक्सन की थाप पर थिरकते दीखते हैं. 
मैं जब होटल के अपने कमरे में सुबह सोकर उठा, तो एक सिख युवक को चाय की ट्रे हाथ में लिए देखा. कमरे की हाउसकीपिंग के लिए भी सिख युवक ही थे. मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि हर जगह मेहनत और श्रम के काम में आप उन्हें आगे देखेंगे. सारे विकास और आर्थिक सम्पन्नता के बाद भी उनमे काम से जी चुराने की प्रवृत्ति नहीं आई है.वे अपने होटलों के मालिक होते हुए भी वहां के सब काम अपने हाथ से करना पसंद करते हैं. हमारे ही देश में ऐसे भी शहर हैं, जिनमे उन लोगों को जूते पहनाने-उतारने का काम दूसरे लोग करते हैं, जिनके पास पैसा आ जाता है. 
शीशे की दुकानों के पार्श्व में हरे-पीले फूल और खेत थोड़ा खिसक गए प्रतीत होते हैं. लेकिन मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अमेरिका- कनाडा की अच्छी बातों को ग्रहण करने में सबसे ज्यादा तत्पर इसी अंचल के लोग हैं. 

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