आज से आठ-दस साल पहले यह शहर एकाएक खास हो गया था. शहर में लाखों लोग होते हैं, लाखों इमारतें. लेकिन किसी एक इन्सान से ही पूरा का पूरा शहर लोकप्रियता में कैसे नहा उठता है, इसकी जीवंत हलचल का साक्षी बना था राजस्थान का झालावाड जिला, जब वसुंधरा राजे सिंधिया राज्य की मुख्य मंत्री बनीं. संभाग मुख्यालय कोटा तो कुछ दिनों के लिए जैसे झालावाड और जयपुर के बीच का 'मिड-वे' बन कर रह गया था. खूब विकास के काम हुए, खूब फेर-बदल हुयी और खूब नए-नए काम सोचे गए.महल-हवेलियों के इस छोटे से सामंती शहर में भव्य मिनी सचिवालय का निर्माण भी उन्ही दिनों शुरू हुआ.कोटा, बारां और झालावाड का शानदार आधुनिक सड़क-ट्रायंगल भी अस्तित्व में आया. अन्ता, इकलेरा और शाहाबाद जैसे आस-पास के कसबे भी उन दिनों विकास की नई करवट लेने लगे. झालावाड का जिला कलेक्ट्रेट पुराने समय के दरबारों की चहल-पहल याद दिलाता है. झालावाड के सर्किट हाउस में ठहरने के दौरान ही मुझे पता चला कि इसके जिस कक्ष में वसुंधरा जी ठहरती हैं, उसमे नवीनीकरण का काम जोरों से हो रहा है. झालावाड जाने के दौरान तरह-तरह के पत्थरों की खानें रास्ते में मन मोह लेती हैं. शहर से कुछ दूर ही वह 'त्रिपुर-सुंदरी' मंदिर है जिसकी मान्यता की मान्यता वसुंधरा राजे के साथ बढ़ गई है, क्योंकि यही वह स्थान है जहाँ से पहली बार राजस्थान की सत्ता हासिल करने का अभियान पदयात्रा आरम्भ करके उन्होंने चलाया था . जनता भी खूब है. पद यात्रा से प्रभावित होकर किसी को सत्ता सौंप भी देतीहै और मन-माफिक न निकलने पर नाराज़ होकर वापस पदयात्री भी बना देती है.
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