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बुधवार, 20 अप्रैल 2011

उसे मीत कम मुसाफिर ज्यादा मिले

सवाईमाधोपुर की यही कहानी है।कहने को इसका नाता जयपुर से इतना नजदीकी है कि केवल एक घंटे की दूरी है , पर राजधानी से इसके मन की दूरी शायद कुछ ज्यादा ही रही कि इसका विकास नहीं के बराबर हुआ। वर्षों तक जहाँ जयपुर में केवल छोटी लाइन थी, सवाईमाधोपुर को बड़ी लाइन पर होने का गौरव प्राप्त था। नतीजा यह हुआ कि यह शहर बड़ी-बड़ी ट्रेनों के गुजरने का माध्यम ही बना रहा। वहां ज़्यादातर मुसाफिरों की भरमार ही रहती थी जो इधर - उधर की गाड़ियाँ बदल कर अपने रास्ते चले जाते थे, और यह नगर वीरान अकेला-अकेला सा रह जाता था। शहर शिक्षा, व्यापार,उद्योग के नाम पर एक क़स्बा सा ही बना रहा। हाँ, पर्यटन की द्रष्टि से इसकी किस्मत ख़राब नहीं रही। प्रसिद्ध रणथम्भौर यहीं पर है। शेर-बाघ के शौक़ीन यहाँ आते रहे और इसी से उस इलाके में होटल - व्यवसाय भी पल्लवित हुआ। अबतो शेरों की पनाह-गाह के रूप में इसकी ख्याति इस कदर हो चली है कि बड़े - बड़े वीआइपी परिवार भी यहाँ आते रहते हैं।प्रियंका वाड्रा तो कई बार यहाँ आती ही रहती हैं। वर्षों तक जयपुर से मुंबई जाने-आने के लिए मैंने भी सवाई माधोपुर में गाड़ी बदली। ग्यारह साल में दो बार ऐसा भी हुआ कि जयपुर वाली गाड़ी देर से पहुंची और मुंबई की गाड़ी निकल गयी। सुबह से रात तक वहीँ स्टेशन पर रहना पड़ा। कुछ साल पहले, वहां एक शगूफा और हुआ । मशहूर कर दिया गया कि वहां के किसी हैंडपंप के पानी से नहाने पर सभी रोग दूर हो जाते है। खैर, अब वह जगह नहीं है। लेकिन रोग हैं, और वे धीरे-धीरे शिक्षा से ही दूर होंगे। शिक्षा पर वहां बहुत ध्यान देने की ज़रुरत है।

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