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मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

जैसे ज़मीन पर अल्मोड़ा

जिस तरह पथरीली नदी "कोसी"  पहाड़ी शहर अल्मोड़ा को घेर कर बहती है, उसी तरह राजस्थान की बनास नदी टोंक के इर्द-गिर्द बहती है. मुस्लिम आबादी का बाहुल्य लिए टोंक जिला एक धीमी रफ़्तार से विकसित होता जिला है. वैसे इसके पास अथाह पानी का खज़ाना है, जो बीसलपुर बाँध में सुरक्षित है. टोंक  में शायद पानी का वही नज़ारा  है जो बिहार में कोयले का, पंजाब में गेंहू का और दिल्ली में कुर्सी का.लेकिन फ़िलहाल टोंक का पानी टोंक की नहीं, बल्कि जयपुर की प्यास बुझाने को आतुर है. वह पाइपों के ज़रिये जयपुर ले जाया जा रहा है. टोंक की सभी तहसीलों की फितरत में भी बला की विविधता है.देवली ने जहाँ सैन्य छावनी की कमान संभाली है, मालपुरा के डिग्गी ने इसके धार्मिक महत्त्व को प्रतिपादित किया है. निवाई व्यापारिक मंडी है, और साथ ही साथ शिक्षा का चमत्कारिक केंद्र है. विश्व-प्रसिद्द ' बनस्थली विद्यापीठ' और एक नया विश्व विद्यालय - मोदी विश्व-विद्यालय भी यहीं है. टोंक के नमदा उद्योग और बीडी के कारखानों की अपनी महत्ता है. टोंक की एक विशेषता ऐसी है,जो आधुनिक सत्ता और शासन पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाती है. यह जिला मुख्यालय रेल मार्ग से जुड़ा हुआ नहीं है. इसके विकास में भी यह सबसे बड़ी बाधा है. कहते हैं कि बहुत ज्यादा रसोइये भोजन को बिगाड़ देते हैं. पिछले कई सालों तक इसे सरकार में बहुत मंत्री मिले शायद इसी से यहाँ जायका बिगड़ा हुआ है.    

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