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रविवार, 24 अप्रैल 2011

वहां ब्रेन ही उगने थे पथरीले शहर कोटा में

राजस्थान के दक्षिण में फैले कोटा शहर में वर्षों पहले हादसा हुआ था.कुछ बड़े उपक्रम जिनमे देश भर की अभियांत्रिकी की अनन्य मेधा बसती थी, एक-एक कर के बंद हो गए. किसी को पता नहीं चला कि   यह क्यों हुआ, कैसे हुआ.कोई नहीं जानता था कि  वहां नियति भविष्य के खेतों के लिए बौर झाड़ रही है.तैयार किये जा रहे हैं - बीज . बंद कारखानों के उच्च शिक्षित अभियंताओं ने अपने जीविकोपार्जन के लिए नई उम्र की नई फसल को अपने संचित ज्ञान के गुर सिखाने शुरू किये, और देखते-देखते पत्थरों - तले सुनहरे भविष्य के अंकुर फूटने लगे. यह कहानी उस कोटा शहर की है जहाँ कोचिंग की नई परिभाषा गढ़ी गयी.जेके,इंस्ट्रुमेंटेशन जैसे नामी  कारखानों के उत्पाद क्या बंद हुए , देश भर के प्रौद्योगिकी संस्थानों [आइआइटी ] को दिया  जाने वाला कच्चा माल , अर्थात अभियांत्रिकी के विद्यार्थी कोटा में तैयार किये जाने लगे. औध्योगिक नगरी ने कोचिंग को उद्योग बनाने में भी देर नहीं लगाई.इस तरह यह शहर एक नए रास्ते पर चल पड़ा. आज यह शिक्षा के अधुनातन कारखाने के रूप में देश भरमे ख्यात है. किसी समय का यह राजपूती परम्परावादी रवायत का शहर आज प्रगति शील विचारों का ज़बरदस्त हिमायती बन चुका है.इसकी अग्रगामी सोच ने निकटवर्ती बारां, झालावाड और बूंदी जैसे धीमे चल रहे शहरों को भी रफ़्तार का महत्त्व समझाया है.       

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