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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

शनिवार, 10 नवंबर 2012

"डायरी-10"

ये लोग आदर देने में बहुत दरिया-दिल हैं। मेरा मित्र छोटी सी बात भी अगर अपनी सत्तर वर्षीय दादी से पूछता है, तो वह पचहत्तर वर्षीय दादा से अनुमति लेकर ही जवाब देती हैं। बड़ों को मान ये खूब देते हैं, न जाने ये इनके आत्म-विश्वास में कमी है, या इनका सम्मान भाव।कोई अकेला कहीं किसी बात का जोखिम नहीं लेता। 'महाराज सा' भी कुछ घोषित करने से पहले अपने चार-छः सलाहकारों से घिर जाते हैं, तभी कुछ बोलते हैं। लेकिन सेवकों को कुछ भी बोलने की अनुमति नहीं है। वह सही बात भी बोलने से पहले केवल इस बात के लिए दुत्कार दिए जाते हैं, कि  वे बोले ही क्यों।कभी-कभी मुझे लगता है कि  यदि कभी महल में आग भी लग जाय, तो ये केवल इशारों से ही बता पायेंगे। क्षमा, आग क्यों लग जाए? ये अच्छे लोग हैं। मेरे तो मेज़बान।

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