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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

बुधवार, 14 नवंबर 2012

"डायरी-14"

मेरी हॉबी-क्लास में एक बार एक लड़के ने बताया था कि  हॉबी जिंदगी में कभी बदलती नहीं है। जो हमें अच्छा लगता है, वह काम हम जीवन-पर्यंत करते रहते हैं। करें न भी, पर करते रह सकते हैं, हमारी क्षमता मिटती  नहीं है।
यहाँ, इस शहर में लोगों की सबसे बड़ी हॉबी बैठ कर बातें करते रहना है। लोग सुबह नहाने-खाने के बाद पेड़ों के नीचे, दुकानों पर, मैदानों में, बैठते हैं। यदि सामने कोई न हो तो वे चुपचाप बैठते हैं, किन्तु किसी भी उम्र, व्यवसाय या अभिरुचि के किसी भी परिचित-अपरिचित  व्यक्ति के उनके सामने आकर बैठते ही वे बातें करने लग जाते हैं। एक दूसरे के सामने आते ही एक-दूसरे  का सब कुछ जान लिया जाता है। इसके बाद वे किसी तीसरे के बारे में बातें करने लगते हैं। किसी भी व्यक्ति को उसकी अनुपस्थिति में अच्छा नहीं बताया जाता। रेल और बसों के समय पर नहीं चलने की आलोचना की जाती है। आसपास से किसी भी लड़की या महिला के गुजरने पर हर उम्र के लोग उस ओर देखने लगते हैं और युवा उसी के बारे में बातें करने लगते है।

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