ये लोग दो भागों में बँटे हैं।बहुत थोड़े से पहली श्रेणी के हैं, जो नया तलाश करते हैं। ये वही हैं, जो घर से-शहर से निकल भी जाते हैं।
दूसरी श्रेणी के लोग ज्यादा हैं। ये अपने अतीत से अधिक जुड़े हैं। इनके घरों में अपने माता-पिता या पूर्वजों की तस्वीरें दीवारों पर टँगी मिलती हैं। ये उनके गौरव को ही जीना चाहते हैं। इनकी रूचि अपनी सार्थकता बनाने में बहुत कम है। रोज़ की सफाई में इन तस्वीरों को डस्टिंग करके साफ़ करना और विभिन्न खास मौकों पर इन पर फूलों की माला चढ़ा कर इन्हें सजा देना इन लोगों को अच्छा लगता है। ये उनके आस-पास सुगन्धित धुंए से वातावरण को महकाना भी पसंद करते हैं।
करण की माताजी ने आज जब "भगवान कृष्ण" की पूजा की, तब उनकी तस्वीर के साथ वैसा ही बर्ताव किया, जैसा पूर्वजों की तस्वीर के साथ होता है।
इस सुगन्धित धुंए से वातावरण के मक्खी-मच्छर हट जाते हैं, किन्तु पूजा के बाद कुछ मीठा तस्वीरों के आगे ज़रूर रखा जाता है, जो चींटों को पसंद होता है।
दूसरी श्रेणी के लोग ज्यादा हैं। ये अपने अतीत से अधिक जुड़े हैं। इनके घरों में अपने माता-पिता या पूर्वजों की तस्वीरें दीवारों पर टँगी मिलती हैं। ये उनके गौरव को ही जीना चाहते हैं। इनकी रूचि अपनी सार्थकता बनाने में बहुत कम है। रोज़ की सफाई में इन तस्वीरों को डस्टिंग करके साफ़ करना और विभिन्न खास मौकों पर इन पर फूलों की माला चढ़ा कर इन्हें सजा देना इन लोगों को अच्छा लगता है। ये उनके आस-पास सुगन्धित धुंए से वातावरण को महकाना भी पसंद करते हैं।
करण की माताजी ने आज जब "भगवान कृष्ण" की पूजा की, तब उनकी तस्वीर के साथ वैसा ही बर्ताव किया, जैसा पूर्वजों की तस्वीर के साथ होता है।
इस सुगन्धित धुंए से वातावरण के मक्खी-मच्छर हट जाते हैं, किन्तु पूजा के बाद कुछ मीठा तस्वीरों के आगे ज़रूर रखा जाता है, जो चींटों को पसंद होता है।
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