वे ज़रूर मुझसे जलते होंगे। वे यहाँ के स्थानीय हैं, यहीं पैदा हुए, यहीं सारा जीवन खपायेंगे, फिर भी एक अजनबी पर उनसे ज्यादा विश्वास करना उनका मनोबल तोड़ सकता है। हाँ, इनके लिए मैं तो अजनबी ही हूँ। पर ऐसा कुछ नहीं होगा। इनका मनोबल नहीं टूटेगा, क्योंकि इनमें मनोबल है ही नहीं। ये सेवक हैं, और वही करेंगे जो कहा जायेगा।
फिर भी, ये इंसान तो हैं ही। इनकी आँखों में गज़ब की निरीहता आ जाती है, जब "खजाने" वाले कमरे में करण की माताजी के जाते समय इन सभी को गलियारे में बाहर दूर ही रोक दिया जाता है। भीतर कोई नहीं जा सकता। कोई नहीं। वह सेविका भी नहीं, जो चांदी की ट्रे में चाबियों का गुच्छा उठा कर यहाँ तक लाती है। यहाँ से चाबियां खुद आंटी अपने हाथों में उठा लेती हैं। भीतर केवल आंटी, करण और मैं ही जाते हैं।
सोना-चांदी-हीरे और इतना धन एक साथ रखा मैंने कभी, कहीं नहीं देखा। आंटी गहने निकालती हैं, तो वही करण ट्रे थाम कर खड़ा होता है, जो कालेज में छात्र-वृत्ति का आवेदन देता है।
फिर भी, ये इंसान तो हैं ही। इनकी आँखों में गज़ब की निरीहता आ जाती है, जब "खजाने" वाले कमरे में करण की माताजी के जाते समय इन सभी को गलियारे में बाहर दूर ही रोक दिया जाता है। भीतर कोई नहीं जा सकता। कोई नहीं। वह सेविका भी नहीं, जो चांदी की ट्रे में चाबियों का गुच्छा उठा कर यहाँ तक लाती है। यहाँ से चाबियां खुद आंटी अपने हाथों में उठा लेती हैं। भीतर केवल आंटी, करण और मैं ही जाते हैं।
सोना-चांदी-हीरे और इतना धन एक साथ रखा मैंने कभी, कहीं नहीं देखा। आंटी गहने निकालती हैं, तो वही करण ट्रे थाम कर खड़ा होता है, जो कालेज में छात्र-वृत्ति का आवेदन देता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें