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सोमवार, 19 नवंबर 2012

"डायरी-15"

आज बहुत मज़ा आया। पर मुझे शर्म भी आ रही है।मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि  ऐसा भी हो सकता है। लेकिन अब हो गया है तो लिखता भी हूँ। क्या यहाँ अक्सर ऐसा हो जाता है? ये लोग ऐसे दीखते तो नहीं? पर दिखने से क्या होता है? और किसी के साथ चाहे होता हो या न होता हो, मेरे साथ तो हो ही गया है न !
नहीं, मुझे यह लिखना नहीं चाहिए। क्या पता कब कौन देखे, और क्या सोचे? न भी लिखूं, तो भी मेरी याद में तो यह घटना रह जाने वाली ही है। मैं इसे आसानी से भूल नहीं पाऊंगा। ज़रूर यह करण  को भी पता चलेगा ही। उसके राजदार यहाँ बहुत लोग हैं, उस से थोड़े ही कुछ छिपा होगा।
लेकिन यदि करण  को मालूम हो जाता, तो वह मुझे कुछ तो बताता। आकर मुझे छेड़ता। हो सकता है, वह मौका मिलने पर बताये भी। हो सकता है वह मुझे बाद में छेड़े। वापस कालेज लौटने के बाद वहीँ चिढ़ाये।
आज-आज इंतज़ार करूंगा। यदि करण  को मालूम होगा तो वह मुझे बता ही देगा। न मालूम होगा तो मैं खुद क्यों बताऊँ।

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