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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

रविवार, 1 मई 2011

उजले मन के सांवले लोग

बांसवाडा के एक विद्यालय में खड़े-खड़े शिक्षकों से विमर्श करते हुए जब एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि इस पिछड़े क्षेत्र का विकास करना कोई बाएं  हाथ का खेल नहीं था, तब मेरा ध्यान सहज ही इस बात पर चला गया कि बांसवाडा क्षेत्र ने राज्य को हरिदेव जोशी के रूप में एक बार मुख्यमंत्री दिया था, जिनका एक हाथ वास्तव में ही नहीं था. शायद शिक्षक महोदय का कटाक्ष इसी ओर था.लेकिन इस कटाक्ष की आज कोई गुंजाईश नहीं है. उदयपुर से बहुत हरे-भरे जंगलों , घुमावदार रास्तों और पथरीले टीले-पर्वतों के बीच से गुज़रते हुए जब आप बांसवाडा में दाखिल होते हैं, तो आपको सहज अनुमान नहीं होता कि यहाँ के आदिवासियों का जीवन कभी कितना कष्टकर रहा होगा. प्रगति की धूप तो दूर की बात है, विकास की हवा तक यहाँ काफी मंद चाल से चली. बांसवाडा शहर में दाखिल होते समय दिन लगभग हमने पूरा खर्च कर दिया था. अच्छी-खासी शाम हो गयी थी. शहर के बाहरी इलाके में मुझे एक शानदार होटल 'रिलेक्स-इन' दिखाई दिया. मैं उसी में ठहर गया. भीतर तो दूर-दूर तक कहीं इस बात का अहसास नहीं था कि मैं कभी भीलों और आदिवासियों का क्षेत्र कहे जाने वाले बांसवाडा में हूँ. यहाँ के लोगों को यदि आप ध्यान से देखें तो आप पाएंगे कि ये दुबले-पतले मगर मज़बूत लोग हैं. और थोड़े  सांवले होने पर भी इनके मन बेहद उजले हैं.यदि कभी आपके मन में आये कि इसका नाम बांसवाडा क्यों पड़ा, तो आपकी हैरानी ख़त्म करने के लिए आपको यहाँ बांस के जंगल भी दिख जायेंगे.     

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