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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

शनिवार, 10 नवंबर 2012

"डायरी-11"

मेरा दोस्त वहां जिस तरह रहता है, उस से हम यहाँ के रहन-सहन का बिलकुल भी अनुमान नहीं लगा पाते। ये वहां बिलकुल बदल जाता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि  कोई बचपन की अपनी आदतों और तौर-तरीकों को नयी जगह जाकर बिलकुल ही छोड़ दे। या तो यहाँ की बातों के मुकाबले उसे वहां के प्रचलन ज्यादा स्वाभाविक और आसान लगते होंगे, या फिर ये हमारी संस्कृति को सम्मान देता होगा। अबकी बार वहां जाने पर मैं इस से यहाँ की कुछ दिलचस्प  बातें वहां भी प्रचलित कर देने के लिए जोर डालूँगा। कितना मज़ा आएगा। मेरी मम्मी को मैं दिन में हर बार मिलने पर बहुत से विशेषणों से युक्त अभिवादनों से खिजा डालूँगा। हम भी ठन्डे फर्श पर ज़मीन में ही बैठ जाया करेंगे। नहाने के बाद कौन-कौन से केमिकल काम लिए जाते हैं, मैं भी अपने पास रखने लगूंगा।

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