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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

"डायरी-16"

वही हुआ,रात को सोने के लिए जब हम दोनों अपने कमरे में आये, करण ने मुझे बहुत चिढ़ाया। वह देर तक हँसता रहा। उसे गौशाला में काम करने वाले लड़के ने सब बता दिया। जब यहाँ सभी को पता चल गया, तो फिर आपको ही क्यों न बता दूं?
मुझे करण  ने पहले कभी बताया था, कि  महल से थोड़ी दूर पिछवाड़े में एक बहुत पुराना मंदिर है। यह मंदिर एक अंधे कुए में अधर-झूलती चट्टान पर बना है। इसे चारों ओर  से एक बूढ़े बड़ के पेड़ ने घेर रखा है। यहाँ तक पहुंचना आसान नहीं है। इस मंदिर की एक बहुत पुरानी और बड़ी मान्यता है। यदि कोई भी लड़की किसी तरह वहां पहुँच कर उस बड़  के पेड़ में किसी लड़के के नाम का धागा बाँध दे, तो वह लड़का उसे पति के रूप में  मिल जाता है।
उस दिन महल में शोर मच रहा था कि  सुबह उस अंधे कुए में किसी का बछड़ा गिर गया। लेकिन बाद में सबको पता चला कि  कोई बछड़ा नहीं, बल्कि दादाजी की सेवा करने वाली वही लड़की गिरी थी, जिसे सीढ़ियों से उतरते देख मुझे शरीरों में रिदम होने का पता चला था। उस बुद्धू लड़की ने किसी को बता भी दिया कि  वह पेड़ पर मेरे नाम का धागा बाँधने चढ़ी थी। मैं दिन भर अपने कमरे में छिपा रहा।

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