पहली बार पुणे जाने से पहले हम उसे 'पूना' के नाम से ही जानते थे. बीच - बीच में पुणे, ठाणे, कोलकाता और मुंबई के नामों के परिवर्तनों को लेकर हुए आन्दोलनों के बारे में भी सुनते रहे. आश्चर्य की बात यह है कि भारत में और भी बहुत से शहरों को कुछ का कुछ कहा जाता है, किन्तु जिन शहरों ने अपने पुराने नाम फिर पाने में दिलचस्पी दिखाई है वे सभी बड़े, आधुनिक और प्रगतिशील नगर हैं. ज़ाहिर है कि यह नाम हमारे देश में अंग्रेजी के और अंग्रेजों के कारण बदल गए थे.
पुणे वास्तव में एक आधुनिक मानसिकता का महानगर है. जब हम पुणे से मुंबई की ओर जाते हैं तो ऐसा लगता है कि अब हम आधुनिकता की पराकाष्ठा को पार करके उत्तर - आधुनिकता में कदम रख रहे हैं. इसी रास्ते को भारत का पहला रेलमार्ग होने का गौरव भी प्राप्त है. यही प्राकृतिक और मनुष्य-निर्मित हरियाली और रास्ते का सबसे जीवंत उदाहरण है.
मैं डेक्कन जिमखाना क्षेत्र में प्रभात रोड पर काफी समय रहा. यह क्षेत्र हमारी सांस्कृतिक सम्पन्नता का भी द्योतक है. इस शहर की बोली में आपको मराठी की मिठास सहज ही दिखाई देती है.बाज़ारों के नाम सप्ताह के विभिन्न दिन लगने वाली हाटों की याद अब भी ताज़ा करते हैं.
एक निहायत ही निजी अनुभव आपको बताऊँ, मुझे यहाँ हमेशा ऐसा लगता था कि उम्र की अवधारणा शायद पुणे में बेअसर है. यहाँ आपको बहुत उम्रदराज़ युवा और कमउम्र परिपक्व लोग खूब मिलेंगे. इस बात पर व्यापक अध्ययन करके इसे अन्य शहरों के लिए भी ले जाया जाना चाहिए.
रजनीश आश्रम ने इसे विदेशों तक लोकप्रियता दी है.