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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

रविवार, 30 सितंबर 2012

"डायरी-2"

   खाने के समय अपनी निरीहता का अहसास होता है, इतनी सारी  चीज़ें परोसी जाती हैं कि उनमें से खाने के लिए कुछ चुनना कठिन एक्सरसाइज़ है। आप खा रहे हों, और आठ-दस लोग चारों ओर  खड़े होकर देख रहे हों, तो आपको अपने किसी चिड़ियाघर में होने का अहसास होता है। मैं शाम को छिपकर देखने की कोशिश करूँगा कि  इस बाकी बचे खाने का क्या होता है। शाम की सैर के समय मैं अपने मित्र को इन बातों के लिए चिढाऊंगा भी।  ये सभी इस तरह परोस रहे हैं, मानो भोजन करने का सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होगा। जो वस्तु समाप्त होती है, वही और रख दी जाती है। क्या भोजन का यह चक्र कभी ख़त्म होगा?  कैसे? क्या हम अपने उदर का कोई नक्षा बनाकर भोजन-गृह में टांगें?

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

"डायरी"-1

   बाहर से इस महल को देख कर मैं समझा था कि  थोड़े से लोगों के लिए इतनी बड़ी इमारत ? पर भीतर आकर पता चला कि  अन्दर बहुत सारे लोगों की भीड़ है। लगभग साठ लोग तीन लोगों के जीवन को जीवन बनाने में जुटे हैं। मैं इस बारे में अपने मित्र से कुछ नहीं पूछ सकता, क्योंकि उसे कुछ पता नहीं है। वह कहता है कि ये लोग मैंने नहीं बुलाये, मेरे पिता ने बुलाये हैं। इन सब पर घर के लोग कितने अवलंबित हैं, यदि किसी दिन ये लोग यहाँ न आयें, तो घर के लोग 'स्टेचू' होकर रह जायेंगे।यहाँ सब कुछ इस तरह चलता दिखाई देता है जैसे जीवन  किसी ट्रॉली में रख कर कई लोगों द्वारा धकेला जा रहा हो। मेरे मित्र का परिवार जैसे किसी मंच पर सजा  है, कुछ भी गोपनीय नहीं।

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

किसी की डायरी पढना अच्छी बात नहीं, फिर भी आपको अनुमति है- "डायरी"

[पहला पृष्ठ खाली  है, केवल बारीक अक्षरों में लिखने वाले के  हस्ताक्षर हैं- -सैम्युअल  स्मिथ [उम्र 15 साल]
"किसी को किसी पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि हर जीवन सृष्टि ने अपनी-अपनी तरह जीने के लिए रचा है। पर एक-दूसरे को देखने और किसी की भी कोई बात चाहने या न चाहने में किसी को कोई ऐतराज़ भी नहीं होना चाहिए। "     -उक्ति 

रविवार, 2 सितंबर 2012

वह एक छोटी सी पुरानी डायरी थी

 वे बहुत मोटे और भद्दे आदमी थे। लेकिन उनके इन गुणों-अवगुणों को मुझे नज़रंदाज़ करना पड़ेगा, क्योंकि इन्ही के कारण वे मुझे मिले। वे उसी वैद्य के पास अपने लगातार बढ़ते मोटापे की दवा लेने आये थे, जिसके पास मैं अपना समय काटने की गरज से कभी-कभी बैठा करता था। उनसे वहीँ परिचय हो गया। वे बोले- बाई जी राज उनकी शिष्या हैं, क्योंकि पुराने महल के खजाने की सात चाबियों में से एक उनके पास है।इसी के साथ वे अपनी उम्र भी अट्ठासी साल बताते थे।
वे कहते थे कि  लगभग तीन सौ साल पहले इस शहर के महाराज साहब का छोटा बेटा इंग्लैण्ड में पढ़ने के लिए  गया था, और उसी के साथ विलायत से उसका एक दोस्त कुछ दिनों के लिए छुट्टियाँ बिताने हिन्दुस्तान आया था। इसी अँगरेज़ बच्चे ने यहाँ शाही परिवार की मेजबानी में घूमते हुए एक डायरी लिखी जो जाते समय वह भूल से यहीं छोड़ गया। अब वह डायरी उनके पास थी। वह दो सदियों तक पूजाघर में रखी आरती की किताबों के साथ महफूज़ रखी रही, क्योंकि शाही परिवार का कोई भी वाशिंदा अंग्रेजी नहीं जानता था। एक दिन महारानी साहिबा ने पूजा के बाद एक दौने में पंचामृत उन्हें दिया और उसी पर ढकने की गरज से वह डायरी उनके साथ उनके घर आ गयी।
अब वे उस डायरी को एक शर्त के साथ मुझे दे देना चाहते थे। शर्त यह थी कि  मैं अपने अगले उपन्यास में एक पात्र के रूप में उन्हें चित्रित करूंगा। शर्त मैंने मान ली, और अब मैं प्रस्तुत करूंगा उसी डायरी के चंद पन्ने बारी-बारी से ..."स्टिल इण्डिया" में।