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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

रविवार, 27 नवंबर 2011

चेन्नई के बारे में इतनी सी टिप्पणी? डायनासोर पर क्षणिका, या व्हेल पर लघुकथा क्यों नहीं लिखी?

मुझे मालूम है कि मैं महानगर की बात कर रहा हूँ. फिर भी बात इतनी सी है, क्योंकि मैं चेन्नई घूमने के इरादे से  नहीं गया था. केवल इस शर्त पर गया था कि मुझे सारा दिन या तो  होटल के कमरे में बैठना होगा, या फिर आस-पास के क्षेत्रों में अकेले घूमना.
फिर भी एक बात में मैंने चेन्नई को भारत के सभी शहरों के मुकाबले सबसे ज्यादा अच्छा पाया. वहां पर बसों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर केवल महिलाएं ही बैठती हैं. यदि आरक्षित सीटें  खाली हों और सामान्य सीटें पूरी भरी हुई हों, तब भी बस में चढ़ने वाले लड़के उन सीटों पर नहीं बैठते, वे खड़े रहना ही पसंद करते हैं. ये महिलाओं का वह सम्मान है जिसके लिए अन्य कई राज्य अभी तरस ही रहे  हैं.कई राज्यों में तो महिलाओं की सीट पर बैठे पुरुषों को महिलाओं के खड़े रहने पर भी न उठते, और बल्कि महिलाओं से बहस करते देखा जा सकता है. ऐसे पुरुषों का तर्क यह होता है कि "समानता" का अधिकार महिलाओं ने खुद माँगा है.
चेन्नई के बीचों के बारे में कुछ कहने से पहले आपको यह बतादूँ, कि मुंबई के सागर-तटों को देख लेने के बाद ये आपको निहायत  ही साफ़ और नीले दिखाई देते हैं.इन पर छुट-पुट सामान बेचने वालों से कोई सौदा लेने में आपको भाषा की  कठिनाई नहीं आती.
चेन्नई पुराना और रईसी शान वाला महानगर दीखता है. यह बेहद प्रबुद्ध लोगों का शहर है. यहाँ के सारे रेलवे-स्टेशनों पर आपको हर कर्मचारी प्रशिक्षित नज़र आता है. एक बात और, चेन्नई में घूम कर ही आप जान पाएंगे कि वैजयंती माला, हेमा मालिनी, रेखा, जयाप्रदा और श्रीदेवी अच्छी हिंदी जाने बिना भी हिंदी फिल्म- दर्शकों के दिलों पर हुकूमत कैसे करती हैं.      

रविवार, 13 नवंबर 2011

अंत तक सब शिष्ट और शालीन बने रहे पानीपत में

इतिहास भी वर्तमान के साथ पालतू पशु की तरह चला आता है- पीछे-पीछे. जब दिल्ली से सोनीपत होते हुए हमारी गाड़ी पानीपत पहुंची, तो थकान बिलकुल नहीं थी. रस्ते भर 'अचारों' के विज्ञापन देख-देख कर मुंह में पानी आता रहा. मैं सोचता रहा कि लौटते समय इन्हें खरीद कर ले जाऊंगा.
पहले ही होटल में काउंटर पर जब मैनेजर ने जवाब देने में थोड़ी देर लगाईं, तो मुझे लगा, यहाँ शायद जगह नहीं मिलेगी. मैं उसके मना करने से पहले ही वापस मुड़ने लगा किन्तु उसने आवाज़ देकर रोका, और हम वहीँ ठहरे.
शाम को एक जगह खाना खाने गए तो खाने का स्वाद देख कर अचरज में पड़ गए, कि इतना ज़ायकेदार खाना खाने इतने कम लोग क्यों आये  हैं. दो दिन शहर में घूमने के बाद पता लगा कि शहर ही छोटा है, और वहां हर जगह ही लोग कम हैं.
मुझे पानीपत में घूमते समय ही अपने परिचित सहकारी राकेश की याद आई. राकेश ने ही मुंबई में मेरा परिचय उसके अफसर भोंडेजी से करवाया  था. राकेश ने उनके सामने ही मुझसे पूछा था- आप भोंडे का मतलब जानते हैं? मेरे हाँ कहने पर भोंडेजी बहुत खुश हुए, यद्यपि वे भोंडे का मतलब न पहले जानते थे, और न मैंने ही उन्हें बताया. बात मेरे और राकेश के बीच ही रही, बहरहाल भोंडेजी दिन भर यह सोच कर प्रफुल्लित रहे कि उनके नाम का हिंदी में कोई मतलब भी है, और उनके दफ्तर वाले, यानि हम लोग उसे जानते भी हैं. वे दिन भर गर्व में भरे घूमते रहे. तो वह राकेश पानीपत का ही रहने वाला था.
पानीपत  भी हमारे देश के बहुत सारे उन शहरों की तरह ही है जिनके पास विकास का कोई स्पष्ट आधार या रूपरेखा नहीं है. लेकिन यह दिल्ली और चड़ीगढ़ को जोड़ने वाले रास्ते पर है, इसका कुछ लाभ इसे ज़रूर मिला है.
मैं बात कर रहा था- इतिहास और वर्तमान की, मेरा तात्पर्य यह है कि पानीपत में घूमते हुए आपको यह भी  याद आ ही जाता है कि यहाँ कभी भीषण युद्ध भी लड़ा गया था.युद्ध के कोई अवशेष अब वहां मौजूद नहीं हैं.