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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

रविवार, 25 सितंबर 2011

झूठ क्यों बोलेगा, सही कह रहा होगा खुर्जा का वह लड़का

जब आप सड़क मार्ग से दिल्ली से अलीगढ़ की ओर जाएँ तो बुलंदशहर पार करने के बाद आपको चाय की तलब ज़रूर लगेगी. इसलिए नहीं, कि सड़क के गड्ढों में झटके खाते-खाते आप थक जायेंगे, बल्कि इसलिए कि खुर्जा की सरहद शुरू होते-होते आपको सड़क के दोनों ओर सैंकड़ों दुकानों पर इतनी खूबसूरत क्रॉकरी दिखेगी कि आपका मन बरबस इनमे से किसी प्यारे से कप या मग में चाय पीने को करेगा. दूर-दूर तक आपको हर तरफ ईंटों की बड़ी-बड़ी चिमनियाँ दिखाई देंगी,पहली नज़र में यह ईंट-भट्टों का अहसास देती हैं, पर वास्तव में यह क्रॉकरी को पकाने के लिए ही बनाई जाती हैं. 
मुझे खुर्जा में रहने वाले एक लड़के ने ही बताया कि इस शहर का नाम ऐतिहासिक उजालों से आता है. दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों को ख़बरें सुलभ कराने वाले घोड़ों के खुरों के अक्स ने इस शहर को यह नाम अता किया है.दिल्ली की सरहद से निकल कर घुड़सवारों का यहाँ तक चले आना यह बताता है कि दिल्ली शुरू से ही खुराफाती तबीयत की रही है. मज़ा देखिये, इस दिल्ली शहर ने कालांतर में इन तमाम खुराफातों को खुर्जा की छवि से ही जोड़ दिया. नगर के बस अड्डे पर आपके दांत खट्टे करने का इंतजाम शहर का अपना मौलिक है. 

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

कोई चितेरा आस-पास नहीं था फिर भी यह द्रश्य था रत्नागिरी में

मुझे तो चेरापूंजी में भी इतनी बारिश नहीं मिली जितनी उस दिन रत्नागिरी में थी. होटल के कमरे से भी आखिर कितनी देर शहर को ताका जा सकता था, इसलिए जैसे ही बारिश का जोर कुछ कम हुआ हम लोग निकल पड़े समुद्र के किनारे.दो बातों पर मेरा ध्यान विशेष रूप से गया.एक तो पैदल चलते-चलते सड़क के किनारे जितने भी बड़े-बड़े बंगले दिखे अधिकांश पर 'मीणा' सरनेम वाले लोगों का नाम था.दूसरे,समुद्र बीचों-बीच से एक लाइन खींच कर दो भागों में बांटा गया था.दोनों बातें ही हैरत में डालने वाली थीं. 
मुझे डॉ.सोहन शर्मा का लिखा उपन्यास "मीणा-घाटी" याद आने लगा. राजस्थान से निकली यह जनजाति आज कहाँ से कहाँ पहुँच गई.शिक्षा से जुड़ने का उनका जुनून आखिर रंग लाकर ही रहा.आज अच्छा लगता है, उन्हें हर जगह कुशलता से काम करते देख कर.
एक तरफ काला सागर और दूसरी तरफ पीला.लेकिन यह कमाल किसी चित्रकार का नहीं है, बल्कि पानी के नीचे बिछी उस रेत का है जो  दब तो गई,पर उसने अपना रंग नहीं बदला.उत्तर भारत में बरसात शुरू होने के बाद आम खाना बंद हो जाता है, पर रत्नागिरी के बड़े-बड़े केसरिया आम इस मौसम में भी लुभा रहे थे.  

सोमवार, 12 सितंबर 2011

कोचीन इस तरह पुराना लगता है,जैसे पुराने सिक्के-और कीमती और आकर्षक

कोचीन बहुत आकर्षक है.यह एक बहुत छोटे से देश की तरह लगता है.सिंगापूर या ब्रुनेई की तरह.यहूदियों की संस्कृति के अवशेष यहाँ आपको इस तरह दीखते हैं मानो वे अभी आपको अतीत में ले चलेंगे.भारत के सागर-तट आम तौर पर उतने साफ नहीं दीखते,लेकिन कोचीन अपवाद है.शायद यह भारतीयता का ही प्रताप है कि आप को कोचीन के बाजारों में त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश की स्थानीय वैश्विकता मिल जाती है.इस का श्रेय रेल मंत्रालय को दिया जाना चाहिए,जिसने देश के हर महत्वपूर्ण शहर को आपस में जोड़ दिया है.
वहां घूमते हुए आपको यह अहसास नहीं परेशान करता कि हम ज्यादा जनसँख्या वाले देश में रहते हैं.सब कुछ पुराना हो जाने पर बीत नहीं जाता.यह पंक्ति कोचीन में घूमते हुए मुझे बार-बार याद आती रही.

रविवार, 4 सितंबर 2011

नैमिषअरण्य में घूमना अच्छा नहीं लगता

सीतापुर से जब हम नैमिषअरण्य के लिए निकले तो कोई कल्पना नहीं थी कि यह कैसी जगह होगी.जगह का नाम  भी सब अपनी-अपनी तरह उच्चार रहे थे.वहां पहुँचते ही प्राचीन भारत की एतिहासिक जगह के स्थान पर आधुनिक भारत की उपेक्षित जगह के दर्शन हुए.निपट कस्बाई माहौल में धार्मिक भावना कहीं से भी प्रभावित नहीं कर रही थी.प्राचीन काल के प्रसिद्द आख्यानों से सम्बद्ध भवन आदि अति साधारण और बाद में निर्मित लग रहे थे.
उत्तर प्रदेश में इस समय जो सरकार है वह उस काल के लोगों और जीवन-मूल्यों से त्रस्त लोगों के समर्थन से बनी सरकार है,इसलिए किसी को कोई दोष नहीं दिया जा सकता.वेदव्यास और तुलसीदास ने जो भी लिखा है,वह समय की कसौटी पर है,इसलिए यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि वह कहाँ बैठ कर लिखा गया है.
समय की धारा को 'डल'झील जैसी ताजगी तभी मिलती है जब अमिताभ बच्चन,शर्मीला टैगोर,आशा पारेख,विनोद खन्ना,शाबाना आज़मी और पूनम ढिल्लों जैसे नामचीन लोग कालजयी "शम्मी कपूर"की अस्थियाँ उसमे प्रवाहित करते रहें.