मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

गुरुवार, 9 जून 2011

मुझे ही यकीन नहीं, तो आप कैसे करेंगे कि शिमला मैंने कैसे देखा

खूबसूरत शिमला हर कोई ऐसे देखता है कि सालों इसे देखने के सपने देखता है, और फिर नज़रों से इसके नज़ारे जी भर-भर देखता है. पर जब मैंने शिमला देखा तो मुझे दो बातें सीखने को मिलीं. एक- बॉस इज आलवेज़ राइट और दूसरी- अफसर के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी चलने वाला और चाहे जो हो, बुद्धिमान तो नहीं. 
उन दिनों मैं दिल्ली में नौकरी करता था. चंडीगढ़ में कोई सरकारी मीटिंग हुई. हैड- ऑफिस से मेरे बॉस भी आये. मीटिंग ख़त्म होते ही मेरे बॉस ने ऐलान किया कि यहाँ से शिमला काफी पास है, देखने चलेंगे. हम कार से  चल दिए.अफसर के साथ पर्यटन का जैसा भी डरा-सहमा आनंद हो सकता है, उसी को महसूस कर के मैं चल दिया.कालका का रमणीक रास्ता पार करके जब हम शिमला की चढ़ाई पर आये, तो मौसम खुशनुमा होने लगा. थोड़ी ही देर में अच्छी-खासी ठण्ड पड़ने लगी. मैं तो दिल्ली से आने के कारण एक स्वेटर रख लाया था, पर बॉस दक्षिण भारत से आने के कारण गर्म-कपड़ों से दूर-दूर तक परिचित नहीं थे. जब वे मॉल रोड पर ठण्ड से सिकुड़े-सहमे सर झुकाए चल रहे थे, मैं नया स्वेटर पहन कर शान से  आगे-आगे चल रहा था.तभी पीछे से आवाज़ आई- गोविलजी,आपका स्वेटर मुझे दे दीजिये. मैं जैसे आसमान से गिरा, बिना किसी लाग-लपेट के ये कैसा फरमान आया? पर गलती मेरी थी, मैंने अफसर के अगाड़ी चल कर अपने स्वेटर का डिजायन खुद उनसे पसंद कराया था.अब कोई चारा नहीं था. मन ही मन मैंने बॉस के हमेशा राइट होने के जुमले को कोसा और भरी ठण्ड में मॉल रोड के बीचों-बीच बेमन से स्वेटर उतारा. अब बॉस प्रफुल्लित होकर शिमला देख रहे थे और मैं मन मसोस कर घड़ी.कब शाम हो और हम निकलें. लेकिन जैसे इतना ही काफी नहीं था. बॉस की दिलचस्पी अब शिमला में बढ़ती ही जा रही थी.वे बोले- चलिए, हम याक़ की सवारी करेंगे.
याक़ वो खतरनाक जानवर था जिस पर बैठा कर वहां एक पहाड़ी रास्ते पर चक्कर कटवाया जा रहा था. रास्ता भी दुर्गम था. एक ओर खाई थी दूसरी ओर कड़ी चढ़ाई. हम दोनों एक-एक याक़ पर बैठ गए और पहाड़ी का चक्कर लगाने लगे. आदमी केवल एक था और वह दोनों जानवरों की रस्सी पकड़े आगे-पीछे चल रहा था.थोड़ी ही देर में उन्हें डर लगने लगा, और वे उस आदमी से  बोले-तुम दूसरी रस्सी छोड़ दो, केवल मेरे साथ चलो.आदमी ने निरीहता से मेरी ओर देखा, मैंने मन ही मन दोहराया- यस, ही इज राइट, जाओ. और मैं  मन ही मन हनुमान-चालीसा का पाठ करता हुआ उस दुर्गम रास्ते पर अनजान जानवर के साथ अकेले सफ़र पर चलता रहा. आप खुद अनुमान लगा सकते हैं कि मुझे कैसा दिख रहा होगा शिमला? उस दिन मन ही मन में मैंने यह कसम भी खाई कि बड़ा अफसर बन जाने के बाद एक दिन घोर गर्मी के मौसम में अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का कोट पहन कर अकेला गधे पर बैठ कर चलूँगा और उनसे कहूँगा कि मेरी रस्सी तुम pakdo.              

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें