खाने के समय अपनी निरीहता का अहसास होता है, इतनी सारी चीज़ें परोसी जाती हैं कि उनमें से खाने के लिए कुछ चुनना कठिन एक्सरसाइज़ है। आप खा रहे हों, और आठ-दस लोग चारों ओर खड़े होकर देख रहे हों, तो आपको अपने किसी चिड़ियाघर में होने का अहसास होता है। मैं शाम को छिपकर देखने की कोशिश करूँगा कि इस बाकी बचे खाने का क्या होता है। शाम की सैर के समय मैं अपने मित्र को इन बातों के लिए चिढाऊंगा भी। ये सभी इस तरह परोस रहे हैं, मानो भोजन करने का सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होगा। जो वस्तु समाप्त होती है, वही और रख दी जाती है। क्या भोजन का यह चक्र कभी ख़त्म होगा? कैसे? क्या हम अपने उदर का कोई नक्षा बनाकर भोजन-गृह में टांगें?
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