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सोमवार, 10 दिसंबर 2012

"डायरी-26"

ये लोग भी अजीब हैं। कुछ बातों को करने में शरमाते हैं। बल्कि करने में नहीं शरमाते,बताने में झिझकते हैं। यहाँ एक दूसरे  का जूठा नहीं खाया जाता। लेकिन कल दोपहर को जब मैं और करण  खाना खाकर उठे, तो एक लड़की बर्तन समेटने आई। हम उसकी ओर ध्यान दिए बिना कमरे से बाहर निकल गए। थोड़ी देर में मुझे ध्यान आया, कि  मैं अपना रुमाल वहीँ रखा हुआ छोड़ आया हूँ। मैं उसे लेने के लिए कमरे में वापस गया तो मैंने देखा कि  वह लड़की करण  की थाली से उसकी छोड़ी हुई खीर को पी रही थी। मेरी आहट से वह पलट कर अपने काम में लग गई।
मैं नहीं मानता कि  उस घर में खीर की ऐसी कमी होगी, जो उसे छिप कर इस तरह दूसरे की थाली से पीनी पड़े।यह अवश्य कुछ और है। करण  भी नौकरानी की इस शिकायत पर क्रोधित नहीं हुआ, बल्कि वह हंसने लगा। 
ये लोग स्त्री-पुरुषों के इतने असंतुलित अनुपात रखते हैं, कि एक दूसरे के बदन के लिए सब लालायित रहें। यहाँ गर्मी में कपड़े कुछ कम करदो, तो चारों ओर  से आँखें चौकन्नी होकर तसवीर उतारने लगती हैं।
लेकिन पिछवाड़े वाले बगीचे में एक मोर आकर जिस तरह नाच रहा था, वह अद्भुत है। ऐसा मैंने और कहीं नहीं देखा। दो महिलायें तो बिलकुल उसके करीब से गुजरीं। पर मोर का नर्तन यथावत रहा।
करण  कहता है, यह भारत का अकेला ऐसा पक्षी है, जिसका नर मादा से ज्यादा सुन्दर होता है। लेकिन शायद करण को ध्यान नहीं होगा, हमने गाँव के एक मेले में जिस मुर्गे की लड़ाई देखी थी, वह भी अपनी मुर्गी से कहीं ज्यादा आकर्षक था। हाँ, करण  की दादी माँ की बात अलग है, वे तो लम्बे घूंघट में ढकी रहती हैं। इसीलिए दादा जी ज्यादा चहकते हैं।        

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