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शनिवार, 15 दिसंबर 2012

"डायरी-28"

करण के पिता की ख्याति यहाँ तक है। हम आगरा आ पहुंचे हैं, लेकिन यहाँ हम अकेले या अजनबी नहीं हैं। जिस जगह हम ठहरे हैं, वहां हमारे बहुत से सेवकों का आगमन हो चुका है।आज मुझे नींद आना बहुत मुश्किल है, क्योंकि करण  ने बताया है कि  जहाँ हम ठहरे हुए हैं, वहां से केवल सात मील की दूरी पर ताजमहल है।
प्रेम की निशानी के इतना करीब आकर कोई  कैसे सो सकता है? प्रेम तो जागना सिखाता है, सोना नहीं।
मेरी उम्र अभी ऐसी बातें करने की नहीं है।लेकिन वह कभी तो होगी। मैं प्रेम को थोड़ा-थोड़ा समझने लगा हूँ।इसमें बदन खेत हो जाता है।खेत की मिट्टी भी तो देखते-देखते हरी हो जाती है, न जाने क्या-क्या उग जाता है।
कुछ कहीं से आ कर शरीर से लिपट जाता है, ऐसा भारीपन। कुछ जिस्म से निकल कर कहीं चला जाता है, ऐसा हल्कापन। मैं कुछ नहीं जानता। मैं कल बात करूंगा।
एक बुज़ुर्ग सा गाइड हमारे साथ आया है। वह कहता है कि हम आज चाँद को देखें।यदि चाँद हमारा आज का देखा हुआ होगा, तभी वह कल हमें समझ में आएगा। चाँद कैसे समझ में आता है, यह नई बात है। कल मैं  आपको बता सकूंगा। कल मुझमें कोई न कोई तब्दीली ज़रूर होगी। मुझे ऐसा लग रहा है कि  आज मेरे लिए किसी बात की आखिरी रात है।
मैं आपको यह बता नहीं पा रहा हूँ कि मेरे बदलाव का साक्षी कौन होगा। क्योंकि यह खुद मुझे भी नहीं पता, लेकिन शायद कल मैं वैसा न रहूँ, जैसा आज हूँ।मुझे कोई नया सबक सिखा रहा है।         

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