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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

बेटा , बुढ़ापा बहुत अच्छा होता है। जीवन के ढेर सारे अनुभव शरीर के पोर-पोर में रच-बस जाते हैं। जेहन में बहुत सारे ऐसे लोगों का मज़मा जुड़ जाता है, जिनसे हम कभी न कभी, कहीं न कहीं मिले होते हैं। चमड़ी की कनात पर हमारी शरारतों के निशान बन जाते हैं। - ["जल तू जलाल तू" से ]

    

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