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शनिवार, 16 अप्रैल 2011

बाड़मेर के तन-बदन

बाड़मेर राजस्थान ही नहीं, बल्कि भारत की सीमा का जिला है जिसके पार पाकिस्तान है।भौगोलिक द्रष्टि से देखें तो यह काफी बड़ा है, क्योंकि यहाँ जनसँख्या का घनत्व काफी कम है। यह बेहद खुला-खुला सा क्षेत्र है। चौड़ी सड़कें और सीमित मात्रा में पेड़।द्रश्य इतना विस्तृत सा दीखता है कि कभी-कभी तो किसी रूसी भूभाग में होने का अहसास होता है।जब सड़क मार्ग से जोधपुर से बाड़मेर के लिए चलें तो चारों ओर फैले वीराने आपको शुरू से ही अपने आगोश में लेने लगते हैं। कुछ जोधपुर के , और कुछ बाड़मेर के गांवों से होकर जब बाड़मेर पहुँचते हैं तो वातावरण बड़ा विराट सा दिखने लग जाता है। संयोग से यदि रास्ते में सूर्यास्त का समय पड़े तो आसमान ऐसा लगता है, जैसे किसी चितेरे ने अभी-अभी आसमान के प्याले में अपनी गुलाबी-सिंदूरी तूलिका धोई है।शहर के बाज़ारों से गुज़रते हुए एक बात पर आपका ध्यान ज़रूर जायेगा। वहां घूम रही महिलाएं आपका ध्यान ज़रूर खीचेंगी। उन महिलाओं के व्यक्तित्व में आपको कई बातों का बेमिसाल असर दिखेगा। पहली बात तो यह, कि पाकिस्तान वहां से नज़दीक होने के कारण मुस्लिम ग्रामीण सौन्दर्य की झलक किसी न किसी कोण से वहां के रहवासियों में आ गयी है।जिस तरह कश्मीर और हिमाचल का सौन्दर्य अपनी आभा बिखेरता है, उसी तरह आप बाड़मेर के चेहरों पर भी नायाब प्रभा-कण पाएंगे। जोधपुर के पुष्ट संगमरमरी लहरिया में लिपटे बदन कुछ-कुछ खिसक कर बाड़मेर तक भी पहुँच गए हैं। और लम्बे-चौड़े सैन्य पड़ाव ने वहां के लोगों में मिलिटरी एरिया वाली स्मार्टनेस और चपलता भी भर दी है। पैसा तो अन्यान्य कारणों से वहां खूब है ही।

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