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रविवार, 17 अप्रैल 2011

अरेबियन नाइट्स का मज़ा राजस्थान में

मैं नागौर पहुँचने वाला था। अभी तक पुष्कर की अगरबत्तियों वाली गंध मन के किसी कौने में रमी हुई थी।मारवाड़ मुंडवा को हम थोड़ी देर पहले छोड़ चुके थे। इस छोटे से कसबे ने मेरी वर्षों पुरानी यादें ताज़ा कर दी थीं।इस का नाम मैं बचपन के उन दिनों से ही सुनता आया था जब यहाँ के युवकों ने रेडियो पर ख़त लिख-लिख कर अपनी पसंद के फ़िल्मी गीतों को सुन-सुन कर अपना और गाँव का नाम प्रसिद्द कर दिया था। दिन भर रेडियो बोलता था, अब सुनिए मारवाड़ मुंडवा से आनंद खत्री और आनंद अकेला की पसंद का यह गीत जिसे आशा भोंसले ने फिल्म वक्त के लिए गाया है। इन्ही यादों ने इस जगह को अमर कर छोड़ा था। कुछ ही देर में नागौर शहर की इमारतें दूर से दिखाई देने लगीं। इसी समय मेरे मोबाईल की घंटी बजी और मुझे सूचना मिली कि थोड़ी ही देर में "जी बिजनस" चेनल पर मेरी बेटी का इंटरव्यू आने वाला है।इतना समय नहीं था कि मैं सर्किट हाउस में, जहाँ मैं ठहरने वाला था, पहुँच कर टीवी देख सकूं। मैंने गाड़ी का रुख बाज़ार की ओर करवाया और मेन मार्केट के बीचोंबीच गाड़ी रुकवाई।वहां एक शॉप कीपर से अनुरोध कर के मैं वह कार्यक्रम देखने में सफल रहा। इसी के साथ मेरी यह धारणा भी बनी कि नागौर एक छोटा शहर ही है। क्योंकि बड़े शहर में कोई व्यापारी ऐसी रिक्वेस्ट मानने में वक्त जाया नहीं करता। खैर, मैंने उसे बड़े दिल वाला शहर माना, चाहे छोटा ही सही।खूब सूरत लाल-लाल पत्थरों से बना वह शहर मुझे मुस्लिम देशों के शहरों जैसा लगा। बगदाद का छोटा रूप सा। ऐसी कहानिया, जिनमे सौदागर अशर्फियाँ कमाने आते हैं, ज़रूर नागौर की कहानियां भी होंगी।

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