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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

गुरुवार, 28 मार्च 2013

"डायरी-30"

मुझे थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ दीजिये। मैं ताज के सामने हूँ। अभी मैं गुनगुना रहा हूँ। मैं उन हज़ारों हाथों को सहला रहा हूँ, जो इस इमारत को बना कर इतिहास में दर्ज हो गए। मुझे उस उम्मीद को सलाम करने दीजिये जिसने मुमताजमहल को दुनिया की निगाहों से कभी ओझल न होने देने का ख्वाब तराशा। मैं उस उद्दाम प्रेमी शहंशाह के लिए सर झुकाता हूँ।
दुनिया का हर प्यार करने वाला अपने अहसासों के चरम क्षणों में इन्हीं गुम्बदों और मीनारों में पनाह पायेगा।इस मुबारक महल के तहखानों तक जाते अँधेरे हर युवा के ज़ेहन के उजाले बनेंगे। 
अब बस करता हूँ, मैं अभी छोटा हूँ न, आप सोचेंगे कि  मैं सुनी-सुनाई कह रहा हूँ।
इस खूबसूरत अचम्भे के गिर्द यमुना बह रही है। लोगों के पास आँखें दो ही होती हैं। वे ठहर जाती हैं, शफ्फाक संगमरमर के गुंजलक पर। उपेक्षा की इसी अग्नि में दहकता यमुना जल दिनों दिन काला हो रहा है। शायद इसी का लाभ उठाते हुक्मरान इस सदानीरा सतत-प्लाविता की अनदेखी कर रहे हैं।
मैं करण से कहता हूँ, कि  अब चलें, कुछ दिन तक कहीं कुछ न देखें।
दुनिया भर के नफरत-गढ़ इस एक प्रीत महल के आगे नत-मस्तक हैं।    

रविवार, 23 दिसंबर 2012

"डायरी-29"

आज मैंने चाँद को समझने की कोशिश की। ये खींचता है। ये वही चाँद है जिसे मैंने बचपन से देखा है। अपने देश के आकाश में भी देखा है। लेकिन मैं छोटा हूँ, इसलिए मैंने इसे केवल देखा। अभी पंद्रह साल ही तो पूरे हुए हैं मेरे।
एक बात बताऊँ? भारत में वो उम्र सुनहरी मानी जाती है, जिसमें पिछले दिनों मैं पड़ गया। इसलिए मैंने ये गुस्ताखी कर डाली। सब कुछ देख कर छत से एक बार नीचे उतर आने के बाद, मैं एक बार सबकी नज़र बचा कर फिर से छत पर चला गया। किसी को मालूम नहीं पड़ा, करण को भी नहीं।
ताज कल ही दिखेगा।कुछ देर पहले जब गाइड ने बताया था कि  वह 'उस' दिशा में है, तब वहां हलके से रुपहले बादल थे, इसलिए कुछ नहीं दिखा।
बादल अब भी हैं। ये बरसने वाले बादल नहीं हैं, ये केवल ताज पर कुदरत का एक झीना पर्दा है। इसने ताज को तो छिपा लिया, लेकिन यहाँ की हवा को कमान पर चढ़ा दिया।अब मैं उतना छोटा भी नहीं हूँ, कि  आप मेरी बात को अनदेखा करदें।
ये एक हरियाली से ढका छोटा, लेकिन मादक शहर है। ये मत सोचिये कि  हमने मदिरा पीली है, मुझ पर तारी प्रमाद हवा के रास्ते मेरी उम्र पर आया है। अपनी झोली में ये हवा ताज की आत्मा पर वारकर कुछ हीरे लिए फिर रही है। कल अभी दूर है। मैंने कभी सोचा नहीं था कि  अपनी उम्र के सोलहवें साल में मैं दुनिया के मायावी आश्चर्य के साये में रात की धूप का सामना करूंगा, और मेरे अंगों को मंत्र अभिषिक्त करने के लिए नियति मुझे सात समंदर पार ऐसे प्रेमनगर में लाएगी।     

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

"डायरी-28"

करण के पिता की ख्याति यहाँ तक है। हम आगरा आ पहुंचे हैं, लेकिन यहाँ हम अकेले या अजनबी नहीं हैं। जिस जगह हम ठहरे हैं, वहां हमारे बहुत से सेवकों का आगमन हो चुका है।आज मुझे नींद आना बहुत मुश्किल है, क्योंकि करण  ने बताया है कि  जहाँ हम ठहरे हुए हैं, वहां से केवल सात मील की दूरी पर ताजमहल है।
प्रेम की निशानी के इतना करीब आकर कोई  कैसे सो सकता है? प्रेम तो जागना सिखाता है, सोना नहीं।
मेरी उम्र अभी ऐसी बातें करने की नहीं है।लेकिन वह कभी तो होगी। मैं प्रेम को थोड़ा-थोड़ा समझने लगा हूँ।इसमें बदन खेत हो जाता है।खेत की मिट्टी भी तो देखते-देखते हरी हो जाती है, न जाने क्या-क्या उग जाता है।
कुछ कहीं से आ कर शरीर से लिपट जाता है, ऐसा भारीपन। कुछ जिस्म से निकल कर कहीं चला जाता है, ऐसा हल्कापन। मैं कुछ नहीं जानता। मैं कल बात करूंगा।
एक बुज़ुर्ग सा गाइड हमारे साथ आया है। वह कहता है कि हम आज चाँद को देखें।यदि चाँद हमारा आज का देखा हुआ होगा, तभी वह कल हमें समझ में आएगा। चाँद कैसे समझ में आता है, यह नई बात है। कल मैं  आपको बता सकूंगा। कल मुझमें कोई न कोई तब्दीली ज़रूर होगी। मुझे ऐसा लग रहा है कि  आज मेरे लिए किसी बात की आखिरी रात है।
मैं आपको यह बता नहीं पा रहा हूँ कि मेरे बदलाव का साक्षी कौन होगा। क्योंकि यह खुद मुझे भी नहीं पता, लेकिन शायद कल मैं वैसा न रहूँ, जैसा आज हूँ।मुझे कोई नया सबक सिखा रहा है।         

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

"डायरी-27"

मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि  हमारे पास तसवीर खींचने की तकनीक ज्यादा उम्दा और सुविधा-जनक है, इसीलिए हमारे स्थान ज्यादा सुन्दर और लोकप्रिय दिखाई देते हैं। वरना भारत के कुछ स्थान वास्तव में ज्यादा सुन्दर हैं। मैं खुद अपने मित्र के महल में मेहमान हूँ, फिर भी यह महल मुझे बेहद खूबसूरत और आकर्षक लग रहे हैं। ताज का शहर आगरा अभी दूर है, पर मुझ पर यहीं से रंग चढ़ रहा है। क्या है, कोई प्लास्टर नहीं, कोई रंग नहीं, फिर भी केवल पत्थरों से इतनी नक्काशी? कितने रंगों के, कितने चमत्कारों भरे पत्थर होते हैं यहाँ।
लाल पत्थर की विशाल हवेली, भीतर से इतनी ठंडी और सम्पूर्ण, कि  इसमें से निकलने को जी न चाहे। कुछ ही दूरी पर पीले पत्थरों का भव्य शिल्प। एक ही जगह पर इतने विविधता-भरे पत्थर कैसे मिल सकते हैं? ज़रूर यह दूर-दूर से लेकर आये गए होंगे। एक और अजूबा।
इन्हें कौन बना कर देता है यह कलात्मक डिजाइनें? मशीनें तो हरगिज़ नहीं। फिर ये कैसे हाथ हैं, जो इन्हें गढ़ गए? शाहजहाँ और मुमताज़ का प्यार तो दिखेगा तब दिखेगा, इनके हाथ चूमने की इच्छा होती है। मुझे तो सचमुच उन कारीगर आत्माओं से प्रेम हो गया है।ये न एक आदमी का काम है, न एक दिन का। हज़ारों लोग पूरे मनोयोग से लगे रहे होंगे महीनों तक। क्यों? क्या मिला उन्हें? कहीं उनका नाम तक तो लिखा नहीं है इन पर?

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

"डायरी-26"

ये लोग भी अजीब हैं। कुछ बातों को करने में शरमाते हैं। बल्कि करने में नहीं शरमाते,बताने में झिझकते हैं। यहाँ एक दूसरे  का जूठा नहीं खाया जाता। लेकिन कल दोपहर को जब मैं और करण  खाना खाकर उठे, तो एक लड़की बर्तन समेटने आई। हम उसकी ओर ध्यान दिए बिना कमरे से बाहर निकल गए। थोड़ी देर में मुझे ध्यान आया, कि  मैं अपना रुमाल वहीँ रखा हुआ छोड़ आया हूँ। मैं उसे लेने के लिए कमरे में वापस गया तो मैंने देखा कि  वह लड़की करण  की थाली से उसकी छोड़ी हुई खीर को पी रही थी। मेरी आहट से वह पलट कर अपने काम में लग गई।
मैं नहीं मानता कि  उस घर में खीर की ऐसी कमी होगी, जो उसे छिप कर इस तरह दूसरे की थाली से पीनी पड़े।यह अवश्य कुछ और है। करण  भी नौकरानी की इस शिकायत पर क्रोधित नहीं हुआ, बल्कि वह हंसने लगा। 
ये लोग स्त्री-पुरुषों के इतने असंतुलित अनुपात रखते हैं, कि एक दूसरे के बदन के लिए सब लालायित रहें। यहाँ गर्मी में कपड़े कुछ कम करदो, तो चारों ओर  से आँखें चौकन्नी होकर तसवीर उतारने लगती हैं।
लेकिन पिछवाड़े वाले बगीचे में एक मोर आकर जिस तरह नाच रहा था, वह अद्भुत है। ऐसा मैंने और कहीं नहीं देखा। दो महिलायें तो बिलकुल उसके करीब से गुजरीं। पर मोर का नर्तन यथावत रहा।
करण  कहता है, यह भारत का अकेला ऐसा पक्षी है, जिसका नर मादा से ज्यादा सुन्दर होता है। लेकिन शायद करण को ध्यान नहीं होगा, हमने गाँव के एक मेले में जिस मुर्गे की लड़ाई देखी थी, वह भी अपनी मुर्गी से कहीं ज्यादा आकर्षक था। हाँ, करण  की दादी माँ की बात अलग है, वे तो लम्बे घूंघट में ढकी रहती हैं। इसीलिए दादा जी ज्यादा चहकते हैं।        

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

"डायरी-25"

आज मुझे ताजमहल सपने में दिखा। यह चमत्कार जैसी कोई बात नहीं है, मैंने तस्वीरों में तो ताज को कई बार देखा ही है। लेकिन फिर भी यहाँ मैंने जिसे भी सपने की बात बताई, उसने यही कहा, इसका अर्थ यही है कि  मैं अब ताज को प्रत्यक्ष देखने वाला हूँ। करण  भी अब ठीक है, हम जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं।
आज मुझे एक शैतानी सूझी। मुझे लगता है कि  "प्यार की निशानी" देखते समय वह चेहरा ध्यान में ज़रूर होना चाहिए, जो आपको प्यारा हो? प्यार की छाँव में आँखें बंद करके बैठने पर आपकी स्मृति-पट्टिका पर झिलमिलाता वही चेहरा, होना भी तो चाहिए। आपको बतादूँ, पहली नज़र में ऐसा कोई चेहरा अभी तक मेरे पास नहीं है। मैं अभी छोटा भी तो हूँ। फिर मैं उस विश्व-प्रसिद्ध अजूबे में क्या देखूँगा? उसका स्थापत्य?
नहीं, मुझे देखना है कि सदियों तक प्यार को  सहेजने वाला यह महल मन में कैसे लहरें उठाता है।मैं कुछ सोच नहीं पा रहा। यदि मेरे नाम का धागा बाँधने किसी सूने मंदिर के भुतहा पेड़ पर चढ़ी कोई लड़की फिसल कर नीचे गिर पड़े, तो इससे भी मुझे ताज के अहाते में बैठ कर सोचने के लिए कोई छवि नहीं मिलती। ये तो उस लड़की की बेवकूफी है। मेरा भविष्य थोड़े ही?
फिर वहां मुझे कौन दिखेगा? क्या वह लड़की, जिसने उस दिन मेरे बैग में रखी चॉकलेट बिना पूछे खा ली थी? नहीं, जब तक वह अपने बालों का स्टाइल ठीक नहीं करती, मैं ताज के सामने बैठ कर उसके चेहरे की कल्पना नहीं कर सकता।