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शनिवार, 10 नवंबर 2012

"डायरी -12"

मैंने संगीत की कक्षा में पढ़ा था कि 'शरीर में एक म्यूजिकल रिदम' होती है। मैंने इस अवधारणा को पढ़कर दिमाग से निकाल दिया था, क्योंकि यह लय की बात  मुझे समझ में नहीं आई थी।
 आज हम लोग जब दोपहर की चाय नीचे, करण के दादा के पास बैठ कर पी रहे थे, तब उन्होंने किसी काम से एक सेविका को बुलवाया। वह ऊपर थी, उसे आवाज़ देने के लिए मैं ही गया,क्योंकि करण  दादाजी की पगड़ी को ठीक कर रहा था। पगड़ी उसके हाथ में लिपटी हुई थी। मैं आवाज़ देकर कुछ देर गलियारे में ही रुक गया, यह देखने के लिए, कि  क्या उसने मेरी आवाज़ सुन कर समझ ली है, और वह आ रही है या नहीं, क्योंकि सीढियां घुमावदार और बहुत सारी थीं।
वह आ रही थी।
हाँ, मेरी म्यूज़िक टीचर ने ठीक कहा था ,शरीर में रिदम होती है। अब मैं समझा कि  टीचर का क्या मतलब था। हम, बहुत घेरदार कपड़े पहने किसी युवा लड़की को सीढियां उतरते देख कर ये कंसेप्ट आसानी से समझ सकते हैं।   

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