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I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

डायरी-9

ये लोग बहुत सारे कपड़े  पहनते हैं, गर्म मौसम में भी हर सुबह नहाने के बाद बदन पर टांगने और लपेटने के लिए इनके पास बहुत कुछ है। लेकिन यह इन चीज़ों के बिना दीखते हुए शरीर को भी चाव से देखते हैं।लगता है कि  इन्हें खुला बदन देखना अच्छा लगता है। शाम को घने पेड़ों के नीचे जब युवा लोग कसरत करते हैं, तो बड़े-बूढ़ों  के साथ महिलायें भी होती हैं, जो अपना चेहरा ढक  कर भी इनका खुला बदन देखती और खुश होती हैं। "कबड्डी" कहे जाने वाले एक खेल में इनकी चपलता देखते बनती है, गाँव के बुज़ुर्ग लोग इसे बच्चों की तरह ललक से देखते हैं और इन्हें ईनाम भी देते हैं। मेरे दोस्त के पिता के कई ज़िम्मेदार और संजीदा अधिकारी इस खेल में मिट्टी  में लोट-पोट  हो जाते हैं। महिलाओं को नहाते देखना अच्छा नहीं माना जाता। लेकिन यह कई लोगों को बेहद अच्छा लगता है। यहाँ कुछ होने और माने जाने में बड़ा अंतर है।

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