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सोमवार, 2 मई 2011

अभी गेंद जिसके पाले में है- जोधपुर

राजस्थान की राजधानी जयपुर को कभी-कभी विचित्र चुनौती मिलती रही है. यह चुनौती है व्यक्तिगत पसंद के आधार पर प्रभावशाली लोगों का उनके अपने नगरों को जयपुर के मुकाबले खड़ा करने का प्रयास करना. यह प्रयास कब और कितना कारगर रहा, यह फ़िलहाल हमारी चर्चा का विषय नहीं है. वर्षों पहले तत्कालीन मुख्य-मंत्री सुखाडिया ने तो राजधानी ही जयपुर से उठा कर उदयपुर ले जाने का प्रयास किया था. जयपुर कुछ जिद्दी भी तो रहा. लाख सर पटकने के बावजूद भी कभी सत्ता-पक्ष के हाथ में आकर ही नहीं देता था. अब है, मगर घर की मुर्गी की तरह, जो दाल-बराबर ही होती है. लिहाज़ा जोधपुर इन दिनों खूब पनप रहा है. सूर्य-नगरी का सूरज इन दिनों परवान पर है. राज्य में जो भी कुछ नया होता है, पहले एक बार तो जोधपुर की संभावनाओं के द्वार पर दस्तक होती ही है. पर्यटन नक़्शे पर पीले-पत्थरों की इबारत लिखने वाले जोधपुर ने कई प्रतिष्ठित देशी और विदेशी बारातों की अगवानी की है. वीआइपी हनीमून चाहे जहाँ मनाएं , फेरे जोधपुर में लेना पसंद करते हैं. कहने को मावे की कचौरी अब आपको हर कहीं मिल जाएगी, पर जिसने जोधपुर की कचौरी नहीं खाई उसने कचौरी का असली स्वाद ही शायद नहीं चखा. फ़िल्मी हीरोइनों ने जिन शहरों को मशहूर किया है उनमे बीकानेर की चमेली के साथ-साथ जोधपुर की जुगनी भी है. इस शहर में घूमना एक मज़बूत अनुभव है. साफ-सुथरा प्यारा सा शहर. 

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