करौली छोटा सा शहर है, लेकिन मुझे इस से एक विचित्र सा लगाव है. इसका कारण भी आपको बताता हूँ. जब मैं बहुत ही छोटा था, तो मुझे एक 'टेलेंट-खोज' परीक्षा के लिए परीक्षा-केंद्र के रूप में करौली ही मिला था. मेरे पिता ने अपनी व्यस्तता के चलते एक अन्य सज्जन के साथ मुझे परीक्षा देने भेजा था. परीक्षा के दौरान वहां के अध्यापकों ने मेरा बहुत ही ध्यान रखा. मेरे मन में तभी से इस शहर के लिए एक आकर्षण हो गया. लौटते समय हम आखिरी बस चूक गए थे, और हमें वाहन बदल-बदल कर वापस आना पड़ा, पर इस से करौली के प्रति लगाव कम क्यों होता? हाँ, अब जब बरसों बाद मैंने करौली को दोबारा देखा, तो मुझे थोडा सा दुःख ज़रूर हुआ, क्योंकि करौली अभी भी ज्यादा विकसित नहीं है. लेकिन विकास की संभावनाएं धूमिल नहीं हुई हैं. मेरे एक मित्र को यहाँ पर विश्व-विद्यालय खोलने की अनुज्ञा मिली है और मैंने देखा, शहर के एक किनारे पर उन्हें मिली ज़मीन में तेज़ी से इमारतें बनने का सिलसिला शुरू हो चुका है. यहाँ की मिट्टी हलकी सी लाली लिए हुए है,और अभी बड़े शहरों की मिट्टी की तरह गन्दी नहीं हुई है. उसमे से ख़ुशबू आती है.यहाँ के पत्थरों में भी लाली है. जब विकास होगा तो इन खूबसूरत प्राकृतिक पत्थरों को खोद-खोद कर शानदार इमारतें बन सकेंगी. मैं करौली में घूमते हुए वहाँ की गलियों में उन बच्चों को ढूंढता रहा, जिन्होंने मेरे साथ वर्षों पहले वहाँ परीक्षा दी होगी. लेकिन अब वे दिखाई थोड़े ही देते, अब तो वे अपने बच्चों के बच्चों की परीक्षा की चिंता में घूम रहे होंगे. सरकार ने यहाँ की सड़कें खूब चौड़ी बना दी हैं. शहर से कुछ दूरी पर कैला देवी का भव्य मंदिर है, जहाँ अच्छी चहल-पहल रहती है.
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