पुरुषार्थ और धीरज मित्र नहीं होते. कभी साथ-साथ रहें भी तो जल्दी ही अलग हो जाते हैं. श्रीगंगानगर की तेज़-रफ़्तार प्रगतिकामी जिजीविषा धैर्य की मंथर प्रयत्नशीलता से अलग हुई तो राजस्थान में हनुमानगढ़ जिला बन गया. हनुमानगढ़ शहर भी दो भागों में बँटा हुआ है,एक जंक्शन के नाम से जाना जाता है दूसरा टाउन के नाम से. चूरू जिले के रतनगढ़ शहर से शैक्षणिक नगरी 'सरदारशहर' होते हुए जब राजमार्ग से हनुमानगढ़ की ओर आते हैं तो रास्ता काफी लम्बा प्रतीत होता है. लेकिन इसी रास्ते पर मंशापूर्ण हनुमान जी का एक विशाल और आधुनिक मंदिर अवस्थित है जो मुसाफिरों को मंजिल से पहले का आरामदेह पड़ाव देता है. इस लम्बी यात्रा में यह मानो सहरा का नखलिस्तान है जिसकी कोई मुसाफिर अनदेखी नहीं कर पाता. हनुमानगढ़ के लोग शैक्षणिक और सामाजिक गतिविधियों में अच्छी रूचि लेने वाले हैं. शायद यही तत्व इसके जन्म का भी एक कारक बना है. यहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों को सुन्दर पतली मेड़ों से सीमाबद्ध किया जाता है. हरियाली और पानी की जो कमी सर्वत्र दिखाई देती है वह धीरे-धीरे यहाँ ओझल होती दिखाई देती है. हनुमानगढ़ के युवा उत्सवधर्मी होते हैं और ऐसे आयोजनों से जुड़ने को लालायित रहते हैं जिनमे उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले.तीज-त्यौहार इस शहर में अब भी पुरातन एकाग्रता से मनाये जाते हैं. दिनचर्या में कस्बाई मानसिकता के साथ बोली में पंजाबी और हरियाणवी का पुट इस नगरी की विशेषता है.
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