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गुरुवार, 5 मई 2011

बाड़मेर की छाया आबू की किरणें और गुजरात का तड़का माने- जालौर

सिरोही और बाड़मेर के बीच का सैंडविच शहर है जालौर . इसकी सीमायें गुजरात से मिलती हैं. हलचल और शोरगुल से दूर , यह एक शांत सा शहर है. जहाँ सिरोही हिल-स्टेशन माउन्ट आबू के कारन देश भर की नज़रों में रहता है, जालौर में केवल वही लोग आते-जाते हैं जो जालौर आते हैं. वैसे तो यहाँ आबादी छितरी-छितरी है लेकिन गुजरात पास में होने के कारण छोटा-छोटा कारोबार करने वाले व्यापारी यहाँ अच्छी तादाद में हैं. किसी समय देश की केन्द्रीय राजनीति में अहम् स्थान रखने वाले बूटा सिंह इसी इलाके से चुनाव लड़ कर लोकसभा में पहुंचा करते थे.जालौर को पर्यटकों का रास्ता भी माना जाता है. जालौर राजनैतिक रूप से बहुत जागरूक शहर है, शायद इसका कारण यही है कि इसने काफी समय तक देश को केन्द्रीय गृहमंत्री दिया है. मुझे जालौर में ghoomte  हुए एक विचित्र बात देखने को मिली कि इस जिले में जिला-मुख्यालय से ज्यादा सजगता आस-पास के ग्रामीण इलाकों में नज़र आती है. मैं आपको यहभी बतादूँ कि यह आकलन मैंने किस आधार पर किया. मुझे काफी देर तक यहाँ के जिला-अधिकारी के साथ बैठने का मौका मिला और इस बीच मैंने देखा कि उनके पास लगातार आते जाने वाले मामले इन्ही क्षेत्रों से थे और जब वे उस क्षेत्र की समस्याओं का कोई समाधान करते थे तो ज़्यादातर मिसालें गावों के मामलों की ही आती थीं.  

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