मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
I am a freelancer running 'Rahi Sahyog Sansthan', an NGO working towards the employment of rural youth in India

रविवार, 15 मई 2011

परम्पराओं और जीवन-शैली की गहरी पैठ आधुनिकता के लिए चुनौती है बूंदी में

राजस्थान के राजे-रजवाड़ों की स्मृतियाँ और शान-शौकत के चिन्ह अब भी जिन शहरों में बचे हैं, उनमे बूंदी भी है. जयपुर से कोटा जाने वाले राजमार्ग पर कोटा से थोडा पहले ही इसका मुख्यालय है. इस शहर को पहाड़ियों ने इस तरह से घेर रखा है, कि यह पहाड़ों की गोद में पत्थरों की कारीगरी का बेहतरीन नमूना है. पर्यटक इसे कोतुहल से देखते हैं. सरकार भी बूंदी महोत्सव का आयोजन करके पर्यटकों के लिए एकसाथ इसकी सभी विशेषताओं को परोसने की ज़िम्मेदारी उठाती है.पुराने ज़माने में लोग कितने मेहनत-कश रहे होंगे, और स्थापत्यकला को जीवन से जोड़ने के शिल्प में उन्हें कैसा महारत हासिल होगा, इसकी शानदार मिसाल बूंदी है. यद्यपि एक आधुनिक शहर के रूप में विकसित होने और जीवन-शैली को मौजूदा दौर का बनाने की कोशिशों में यही विशेषताएं बाधा भी बनती हैं. फिर भी माहौल अब तेज़ी से बदल रहा है. 
जो राजा बदलते समय के साथ बदलने में यकीन रखते थे, उनके नगर भी आधुनिक हो गए, पर जिनकी अपने संस्कारों, परम्पराओं और जीवन-शैली पर गहरी पैठ थी, उनके नगर आज भी आधुनिकता की चुनौती  से जूझ रहे हैं.बूंदी के केशोरायपाटन और लाखेरी जैसे कसबे औद्योगिक विकास में काफी आगे हैं. लाखेरी तो किसी उद्योग नगर की संस्कृति ही जी रहा है. पानी की पूरे जिले में कोई कमी नहीं है. चम्बल नदी के तट जिले को जगह-जगह से भिगोते हैं.   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें