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बुधवार, 11 मई 2011

राज- बत्तीसी और अकल- दाढ़ माने प्रतापगढ़

मैं अपनी यात्रा में जब उदयपुर से चित्तौड़ की ओर आ रहा था बीच में निम्बाहेडा  और छोटी व बड़ी सादड़ी पड़े.यह इलाका सीमेंट के उत्पादन के लिए जाना जाता है. यहीं वह महत्वपूर्ण खबर भी मिली कि राजस्थान का जो नया जिला बन रहा है वह इस इलाके से लगता हुआ ही है.मैं प्रतापगढ़ को देखने का लोभ छोड़ नहीं सका. जिले की तब-तक केवल घोषणा ही हुई थी, मुख्यालय के दफ्तरों ने काम करना शुरू नहीं किया था. मेरी दिलचस्पी यह जानने में थी कि चित्तौड़ के कुछ हिस्से को निकाल कर यह जिला किस आधार पर बनाया जा रहा है? मेरी जानकारी के अनुसार उस समय लगभग नौ शहर जिला बनने की दावेदारी में थे.मैंने वहां कई लोगों से बात की. छोटे-बड़े, ग्रामीण-शहरी, व्यापारी-कर्मचारी कई लोगों से मैं मिला. बाद में अपने अवलोकन की पुष्टि के लिए मैं राजस्थान पत्रिका अखबार के कार्यालय में भी गया. मुझे इस शहर के जिला बनने के प्रमुख रूप से दो कारण दिखाई दिए. एक कारण तो यह, कि दक्षिणी राजस्थान की लम्बी-चौड़ी आदिवासी बेल्ट का संतुलित विकास करने की द्रष्टि से उदयपुर संभाग का कुछ हिस्सा चिन्हित करना ज़रूरी समझा गया , ताकि इसका त्वरित विकास हो सके. इस हिस्से की अब उदयपुर संभाग काफी घना हो जाने के कारण अनदेखी हो रही थी. दूसरे, इस इलाके के बहुत सारे लोग विदेशों में थे और छोटे-छोटे गाँव-ढाणी तक में विदेशी पैसा खूब आ रहा था. इस तथ्य को जिले की अर्थ-व्यवस्था के पक्ष में माना गया. और इस तरह यह जिला बन गया. मुझे लगा, सर्कार ने यह निर्णय राजनैतिक सोच से नहीं लिया, बल्कि समझ-बूझ कर अकल से लिया है. बस, इस राज-बत्तीसी में अकल-दाढ़ आ गयी.         

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